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Corona: “काश साफ-सफाई से रहने वाली प्रक्रिया को लोग ताउम्र फॉलो करते”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

पिछले कुछ दिनों से कुछ परिवार इकठ्ठे हो गए हैं। घर के बुज़ुर्ग लोग जिनकी छींकों, खांसियों को घर में कोई महत्व नहीं दिया जा रहा था, आज उनकी इन रोज़मर्रा की आदतों पर ध्यान दिया जाने लगा है।

यह ध्यान इस समय मरहम जैसा है। यह उन्हें यकीन दिलाता है कि उनके हमदर्द बाकी है। खासतौर पर जब उन बुज़ुर्गों ने टीवी पर यह खबर देख ली हो कि इटली में बुजुर्गों को मरने के लिए छोड़ दिया है।

कुछ लापरवाह दोस्त, रूमीज़ जो एक-दूसरे से किराए पर लिए हुए कमरों को लेकर लड़ लिया करते थे, आज वे मिलकर एक-दूसरे के कमरों की सफाई में एक-दूसरे के साथ हैं।

लोग फ्रीलान्सिंग कर रहे हैं जिससे सड़कें खाली हैं। बस में जितनी सीटें हैं उतने ही लोग बैठ रहे हैं। ट्रेफिक बहुत कम है लेकिन हम इंतज़ार में हैं कि कब चीज़े बिलकुल पहले जैसी हो जाएं।

हवा में धुआं अब कुछ कम है। नदियों का पानी साफ हो गया है। फिर से उनमें कुछ बत्तख तैरते दिख रहे हैं। आर-पार दिखते पानी में कुछ मछलियों ने अंडे दिए हैं। मछलियों के बच्चे तैरना सीख रहे हैं।

दुनिया के कई हिस्सों का टेम्प्रेचर गिर गया है। हम उतनी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित नहीं कर रहे हैं जितनी रोज़ किया करते थे। इस महामारी के चलते हमें ग्लोबल वॉर्मिंग को ना बढने देने का तरीका भी मिल गया है लेकिन हम इंतज़ार में हैं कि कब चीज़ें बिलकुल पहले जैसी हो जाएं।

लोग साफ़-सफाई का पूरा ध्यान रख रहे हैं। अपने चेहरे को छूने से पहले हाथ धो रहे हैं। हाथ मिलाने के बजाय नमस्ते कर रहे हैं। लोग सांस्कृतिक घमंड भी कर रहे है। खांसने-छींकने के पहले मुंह पर हाथ लगा रहे हैं।

खुले में थूकने से भी बचने लगे हैं। संक्रामक बीमारी से चेहरे पर मास्क भी पहने हैं। उनकी कारें भी अब चकाचक हैं। सरकारें बसें और अन्य पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सफाई पर खास ध्यान देने लगीं हैं।

ट्रेनों में अब साफ तकिये और कम्बल रखे जा रहे हैं। वे इंतज़ार में हैं कि कितने दिन और उन्हें इस साफ सफाई से रहना पड़ेगा। वे फिर से पहले जैसा प्रदूषण फैलाने की बाट देख रहे हैं।

कई लोग नॉन-वेज नहीं खा रहे हैं। जानवर कम मारे जा रहे हैं। मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर भी अब खाली से हैं। इससे भगवान, अल्लाह, क्राइस्ट के सामने जो शोरगुल रोज़ मचता था वो भी कम हो गया है। उनके कानों को आराम है।

योगी रामनवमी मनाने जा रहे हैं!

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। फोटो साभार- सोशल मीडिया

इस दौरान नेताओं की खरीद-फरोख्त और सरकार बनाने-गिराने की जद्दोजहद भी जारी है। राज्यसभा में बहुमत हासिल करके संविधान बदलकर देश को दोबारा गुलाम बनाने की साज़िश भी जारी है।

ईमानदार लोगों, सामजिक कार्यकर्ताओं पर पीएसए, एनएसए, उपा, एनआरसी लगाकर उहें आजीवन कारावास की तैयारी भी जारी है। हम क्या लिख रहे हैं, क्या पहन रहे हैं, कहां जा रहे हैं, हमारी क्या मान्यताएं हैं, उस पर सरकारी देखरेख भी जारी है लेकिन हम इंतज़ार में हैं कि कब चीज़े बिलकुल पहले जैसी हो जाएं।

योगी जैसे लोग रामनवमी मनाना चाहते हैं। रामनवमी के त्यौहार का उपयोग हिन्दू वोट इकठ्ठे करने में किया जाएगा जैसे कुम्भ के मेले का किया गया था। इन मेलों में भीड़ इकठ्ठी होगी। इनमें से एक भी अगर COVID-19 से ग्रसित हुआ तो वह सब में फैलाकर जाएगा।

इसे सामूहिक नरसंहार ना कहूं तो और क्या कहूं? इससे कुछ बच जाएंगे और कुछ मारे जाएंगे। हम अपनी गलती नहीं मानेंगे और कह देंगे कि कितना शुभ है ना, रामनवमी के पावन दिन भगवान ने स्वयं इनको अपने पास बुला लिया या पिछले जन्म को भी ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।

अगर योगी और उनके मंत्रियों में COVID-19 के लक्षण पाए गए तो उनका वीआईपी ट्रीटमेंट शुरू हो जाएगा लेकिन बाकी आम लोगों को ऐसा कुछ हुआ तो उन्हें गौमूत्र पिलाया जाएगा, गोबर खिला दिया जाएगा।

शराब के ठेकों पर भीड़

एल्कोहल से कोरोना मर जाता है, यह मानकर कुछ लोग शराब के ठेकों पर जम गए हैं। बिलकुल ऐसी ही हरकतें कट्टर मुल्ले भी कर रहे हैं। (यहां मैं जान बूझकर मुसलमान शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहा हूं।) वे अभी भी दुआ मांगने मस्जिदों में इकठ्ठा हो रहे हैं।

जितनी दूरी बनाए रखना चाहिए उतनी नहीं बना रहे हैं। उनको लगता है कि अल्लाह ने उन्हें विकलांग बनाकर भेजा है इसलिए सब अल्लाह के हाथ में है, उनके हाथ में कुछ भी नहीं है। अल्लाह ऐसी विकलांग मानसिकता वाले लोगों का कुछ नहीं कर सकता है। सिर्फ उसने ऐसे लोगों को क्यों बनाया इस पर अफसोस कर सकता है।

कैसे खत्म होगी कोरोना के खिलाफ लड़ाई

मास्क पहने लोग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

COVID-19 ने कई लोगों की जान ले ली है। इससे पहले भी इस तरह की संक्रामक बीमारियों ने बहुत जानें ली हैं लेकिन हम बीमारी की दवाई इज़ाद होते ही पहले जैसे लापरवाह हो जाते हैं। क्या COVID-19 ऐसी आखिरी बीमारी हो सकती है जो हमें सतर्क कर जाए?

दुनिया में जितने लोग युद्ध और आतंकी हिंसा से नहीं मरते हैं, उतने लोग ऐसी बीमारियों से मारे जा रहे हैं। हमने दुनिया में इतना कचरा फैला दिया है जिसकी कीमत खरबों में है और हम इस इंतज़ार में हैं कि कोई कबाड़ी मसीहा आएगा और हमारा कचरा उठाकर ले जाएगा।

कोई नहीं आने वाला। अगर हम सतर्क ना हुए तो कोई भी नहीं आने वाला है और शायद ऐसे ही लापरवाह रहें तो कोई बचने भी नहीं वाला है। आज भी मलेरिया, डेंगू और फ्लू से मौतें हो रहीं हैं।

COVID-19 से हमारी लड़ाई कम-से-कम एक साल और ज़्यादा चलने वाली है। जब तक इस बीमारी से ग्रसित अंतिम इंसान का संक्रमण रोका ना जाए और जब तक इसकी कोई दवा ना बन जाए और उसकी उपलब्धता हर एक इंसान के लिए जब तक ना हो जाए, तब तक यह लड़ाई खत्म नहीं होगी।

यह लड़ाई लंबी है

जो इंडस्ट्री “वर्क फ्रॉम होम” के आधार चल सकती है, क्यों ना उन्हें ऐसे ही चलाया जाए।  इससे ट्रैफिक कितना कम होगा, परिवार इकठ्ठे रह सकेंगे। पर्यावरण के लिए भी बेहतर हैं।

धर्मो से परे हम मेडिकल फेसिलिटीज़ पर जितना ज़ोर अब दे रहे हैं उतना हमेशा कायम रहे। जिस तरीके से हम अभी साफ-सफाई पर ध्यान दे रहे हैं, वह ताउम्र जारी रहे। कचरा कम हो और रियुज़ेबल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल ज़्यादा हो।

रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री पर सरकारें ज़ोर दें। पेड़ ज़्यादा लगाए जाएं। हम स्वयं बिना किसी कानून के दबाव में आए अपने विवेक से जनसंख्या ना बढ़ने दें।

वैक्सिनेशन और रेगुलर चेकअप्स का हम अब ध्यान रखें। जानवरों के अधिकारों का भी हम उतना ही ध्यान रखें जितना सामजिक जानवरों के अधिकारों का करते हैं लेकिन यह लड़ाई हमें बहुत ही विवेक और समझदारी से लड़नी है। आखिरी कोशिश यह हो कि ये फिर दोहराई ना जाए।

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