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आखिर छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय की गोंडी भाषा खतरे में क्यों है?

फोटो साभार- वर्षा

फोटो साभार- वर्षा

होडो होन कजिते टोलोआ, बायरते काए तोलोआ।

इस मुंडारी कहावत का मतलब है कि मुंडा (यानी आदिवासी) को वचन से, रस्सी से नहीं बांधा जा सकता, क्योंकि वह वचन या बातचीत और तथ्य में भरोसा करता है। यह उनके सभा और बैठक जमाने की आदत को भी उजागर करता है।

इसलिए, छत्तीसगढ़ के ग्राम तिवरता में हर साल आदिवासी युवा बैठक होती है। यह दिसंबर के महीने में होती है। पिछले साल यह 10 दिसंबर को हुई थी।  

यह गोंडवाना उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, तिवरता में  शहीद वीर नारायण सिंह बिंझवार की शहादत दिवस आयोजित की गई। नारायण सिंह बिंझवार (1795-1857) आदिवासी आज़ादी सेनानी थे, जिन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई की थी।

उन्हें “आदिवासी रॉबिन हुड” भी कहा जा सकता है, क्योंकि वे अंग्रेज़ों से पैसे लेकर गरीब आदिवासियों में बांटते थे। उनका मानना था कि आदिवासी उस पैसे के असल हकदार हैं, क्योंकि उनकी मेहनत से अंग्रेज़ मुनाफ़ा कमा रहे थे। 

गोंडी भाषा के विस्तार हेतु आयोदित कार्यक्रम। फोटो साभार- वर्षा पुलस्त

आदिवासी युवा बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में ग्राम तिवरता के मुख्य उपसरपंच सिवरतन आर्मो एवं विशिष्ट अतिथि गोंड़वाना स्कूल के प्राचार्य जी एस राजन थे।

शासकीय उच्च माध्यमिक, गोड़वाना की शाला बरेली, प्रधान पाठक इन्द्रपाल सिंह मरकाम और माध्यमिक शाला के अध्यक्ष दिलराम नेटी ने इस कार्यक्रम को संम्पन कराया। 

गोंडी भाषा के विस्तार हेतु आयोजित कार्यक्रम के दौरान खींची गई तस्वीर। फोटो साभार- वर्षा पुलस्त

इस बैठक और कार्यक्रम का मुख्य ज़ोर आदिवासियों के परम्पराओं पर था। इन्हें बचाने और संचारित करने पर विचार विमर्श हुई।

इसमें मुख्य बात निकालकर आई कि आदिवासी समिति के द्वारा अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाएं। इनमें बच्चों को शामिल करना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे ही भविष्य हैं। 

गोंडी भाषा का विस्तार करने के लिए उत्सुक बच्चे। फोटो साभार- वर्षा पुलस्त

बच्चों को गोंडी आदिवासी भाषा सीखने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। अक्सर शोषण और लाज लज्जा के कारण, आदिवासी अपनी भाषा नहीं बोलते हैं। इससे भाषाओं के लुप्त होने का खतरा है। साथ ही, भाषा के साथ सम्मिलित परंपराएं भी खत्म हो रही हैं।

कार्यक्रम का मकसद था गोंडी भाषा को सुरक्षित रखने के लिए ज़रिया तलाशना। इसके प्रचार में निर्णय लिया गया कि गोंडवाना स्कूल के सभी वर्ग के बच्चों को गोंडी सिखाई जाए। गोंड़वाना स्कूल में बच्चों को पारंपरिक अभिनंदन के बारे बताया गया।

अभी किसी भी व्यक्ति से मिलने पर “नमस्कार” कहा जाता है लेकिन, छोटनगपुर आदिवासियों का पारंपरिक अभिनंदन “जय सेवा” या “जय जोहार” रहा है। बच्चों को सभी से मिलने पर ऐसे ही अभिनंदन करने को प्रेरित किया गया। इससे सभी जान सकेंगे कि वे गोंड आदिवासी हैं और लोगों में गर्व की भावना जागेगी।

बच्चों को गोंडी भाषा में सरल से लेकर जटिल चीज़े सिखाई जा रही हैं। इसमें दिन और रात के अनेक समय भी शामिल हैं। जैसे, गोंडी भाषा में सुबह को निक्को सकाडे, दोपहर को निक्को धपाडे, शाम को निक्को नुलपे, और रात को निक्को नरका कहा जाता है।

गोंडी पत्रिका। फोटो साभार- वर्षा पुलस्त

गोंड आदिवासियों की “गोंडवाना वंश” की एक खास परंपरा है। गोंडवाना वंश एक सूची है जिसमें सभी गोत्रों के नाम लिखे होते हैं। इसमें गोंडवाना वंश की जानकारी होती है। इसमें गोंडी समुदाय की बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां होती हैं, जैसे वे कहां से आए और उनकी भाषाओं के बारे में इत्यादि। इसमें उनके इतिहास को संजोया गया है।

गोंडवाना स्कूल में बहुत दूर-दूर से बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। ये बच्चे भी गोंडी सीखने के लिए उत्सुक होते हैं। गोंडवाना स्कूल में बच्चे सभी विषयों को मन से पढ़ते हैं लेकिन इसके अलावा वे और कुछ भी पढ़ते हैं जिसे गोंडवाना पत्रिका कहते हैं। यह मासिक पत्रिका होती है जिसे पढ़ने के लिए बच्चे हर महीने बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। ये गोंडी भाषा की स्पेशल पत्रिका है।

भले ही पत्रिका मात्र 3 रुपए की हो लेकिन ये जानकारियों का खज़ाना है। इस पत्रिका में तमाम चीज़ों की रोचक जानकारियां होती हैं। जैसे- गोंडी देवी-देवताओं, पूजा-पाठ के रीति रिवाज़, वेशभूषा इत्यादि। इसमें गोंडी कैलेंडर भी आता है। इसमें गोंडी भाषा में दिनों और महीनों के नाम के साथ, गोंडी त्यौहारों का भी ज़िक्र होता है।

युवा शक्ति संघ अपने गोंडी आदिवासियों, परंपराओं और समाज को बचाने के लिए तैयार है। वे ऐसे बैठक और सभा सालभर भी करते हैं जिसमें हरेक घर से कम-से-कम एक व्यक्ति ज़रूर जाता है।


लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती हैं। वो स्टूडेंट हैं जिन्हें पेड़-पौधों की जानकारी रखना और उनके बारे में सीखना पसंद है। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।

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