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2025 तक टीबी को समाप्त करने के भारत सरकार के दावों में हम कहां खड़े हैं

फोटो साभार- सोशल मीडिया

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संक्रामक बैक्टीरिया से होने वाली खतरनाक बीमारी को तपेदिक, क्षयरोग या टीबी के नाम से जाना जाता है। क्षयरोग पैदा करने वाले जीवाणु ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबर्क्युलोसिस’ की खोज सर्वप्रथम जर्मन के फिज़ीशियन और माइक्रोबायोलॉजिस्ट रॉबर्ट कोच ने 24 मार्च, 1882 में की थी।

कुछ बातें जो आपको जाननी चाहिए

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

क्षयरोग से विश्व को मुक्त करने हेतु रणनीति और लक्ष्य

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

दुनिया को टीबी जैसी महामारी से छुटकारा दिलाने और वर्ष 2035 तक होने वाली मौतों को 95 प्रतिशत तक कम करने के साथ टीबी के नए मामलों को 90 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य तय हुआ। इस उद्देश्य हेतु  WHO द्वारा ‘The End TB Strategy’ मुहिम चलाई गई जिसके तहत हर पांच साल के लक्ष्य तय किए गए।

जैसे 2020 तक टीबी से होने वाली मौतों को 35 प्रतिशत कम करने तथा टीबी के नए मामलों को 20 प्रतिशत तक की कमी का उद्देश्य निर्धारित किया गया। इन उद्देश्यों के साथ WHO ने 2035 और भारत सरकार ने 2025 तक टीबी को समाप्त करने की कार्य योजना बनाई। विश्व टीबी दिवस के लिए हर साल एक नई थीम बनाई जाती है, जिसके तहत आज भी टीबी से जंग जारी है।

क्या है ट्यूबरक्‍युलोसिस बैक्टीरिया

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

“टीबी” बैक्टीरिया जनित एक बीमारी है जो हवा के ज़रिये एक इंसान से दूसरे में फैलती है। आमतौर पर यह फेफड़ों से शुरू होती है। मरीज़ के खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदें इन्हें फैलाती हैं।

फेफड़ों के अलावा ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गले आदि में भी टीबी हो सकती है। फेफड़ों के अलावा बाकी टीबी एक से दूसरे में फैलने वाली और पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली बीमारी नहीं है।

टीबी का बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में होता है, उसके टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है और इससे उस अंग का काम प्रभावित होता है। मसलन, फेफड़ों में टीबी है तो वह फेफड़ों को धीरे-धीरे बेकार कर देती है।

यूटरस में है तो इनफर्टिलिटी की वजह बन जाती है। हड्डी में है तो हड्डी को गला देती है। ब्रेन में है तो मरीज़ को दौरे पड़ सकते हैं। लीवर में है तो पेट में पानी भर जाता है।

टीबी किसे होती है?

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अच्छा खान-पान न करने वालों को टीबी ज़्यादा होती है क्योंकि कमज़ोर इम्यूनिटी से उनका शरीर बैक्टीरिया का वार नहीं झेल पाता है। जब कम जगह में ज़्यादा लोग रहते हैं तब इन्फेक्शन तेज़ी से फैलता है।

अंधेरी और सीलन भरी जगहों पर भी टीबी ज़्यादा होती है क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया अंधेरे में पनपता है। यह किसी को भी हो सकता है। स्मोकिंग करने वाले को टीबी का खतरा ज़्यादा होता है।

भारत में टीबी फैलाने पर सज़ा का भी प्रावधान है। आईपीसी की धारा 269 और 270 के मुताबिक टीबी का सही से इलाज ना कराने और इसे दूसरों तक फैलाने के लिए 6 महीने तक की सज़ा हो सकती है। XDR टीबी फैलाने पर 1 साल तक की सज़ा हो सकती है।

फिरोज़ाबाद में क्यों फैलती है टीबी?

फिरोज़ाबाद के पी.पी.एम.समन्वयक मनीष कुमार ने बताया कि ओद्योगिक नगर की फैक्ट्रियों में कांच की चूड़ियां, बर्तन व अन्य सामान बनाते समय उड़ने वाले धूल के अत्याधिक सूक्ष्म कण हवा में घुल जाते हैं।

जो कार्य क्षेत्र में मौजूद व्यक्ति के शरीर में स्वांस के साथ अंदर चले जाते हैं। जो फेफड़ों को बुरी तरह से ज़ख्मी कर देते हैं, प्रभावित होने वाले व्यक्ति को इससे खांसी होती है।

टीबी के लक्षण

15 दिन से ज़्यादा की खांसी टी.बी. का एक अहम लक्षण है। यदि व्यक्ति खांसी से लगातार ग्रसित रहता है तो इसे गम्भीरता से लेते हुए अपने नज़दीकी चिकित्सक या ज़िला अस्पताल में क्षयरोग विशेषज्ञ से अवश्य जांच कराएं अन्यथा टीबी जानलेवा भी हो सकती है।

ज़िला क्षयरोग कार्यक्रम समन्वयक आस्था तोमर ने टीबी के खास लक्षण का ज़िक्र करते हुै बताया,

यदि दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक खांसी रहती है या खांसी के साथ बलगम अथवा बलगम के साथ खून आता है, तो यह टीबी का संकेत है।

उन्होंने आगे कहा, “यही नहीं, लगातार वजन घट रहा है, भूख कम लगती है, सीने में दर्द रहता है तो इसे गंभीरता से लेते हुए अपने नज़दीकी चिकित्सक अथवा ज़िला क्षयरोग नियंत्रण केंद्र पर जांच अवश्य करा लें। सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं के अंतर्गत समस्त सरकारी केन्द्रों पर टीबी रोग से ग्रसित गंभीर से गंभीर मरीज़ों का निःशुल्क इलाज किया जाता है।


संदर्भ- हिन्दुस्तान. सत्याग्रह और thehealthsite.com

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