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ऑनलाइन एग्ज़ाम के विरोध में क्यों उतरे DU के स्टूडेंट्स?

delhi university students

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कोरोना के प्रकोप और लॉकडाउन के बीच ऑनलाइन शिक्षा एक बड़े बहस का मुद्दा बन गया है। तमाम शैक्षणिक संस्थान बंद हैं जिससे कि शैक्षणिक सत्र बुरी तरीके से प्रभावित हुआ है।

प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने से लेकर प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने वालों तक सब इस अनिश्चितता की मार झेल रहे हैं। ऑनलाइन क्लासेज़ और असाइनमेंट्स की भी इस बीच लगातार आलोचना हुई क्योंकि फिलहाल ये सबको एक पंक्ति में खड़ा कर पाने में सक्षम नहीं है।

बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स अपने गाँव जा चुके हैं और चूंकि ऑनलाइन माध्यम भारत में अब तक उतना प्रचलित था भी नहीं इसलिए मौजूदा समय में यह सबके लिए सुलभ भी नहीं है।

ऑलनाइन एग्ज़ाम की तारीखों का ऐलान

ऑनलाइन एग्ज़ाम आयोजित कराने के लिए डीयू का नोटिस।

इसी बीच दिल्ली यूनिवर्सिटी ने नोटिस जारी करके ऑनलाइन परीक्षा लेने की बात कही है। यह परीक्षा 1 जुलाई से 15 जुलाई के बीच ली जाएगी। हालांकि अभी तक इसकी डेटशीट जारी नहीं की गई है।

बहुत बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स का यह कहना है कि ऑनलाइन परीक्षा देने में वो फिलहाल असमर्थ हैं। इसी को लेकर 15 मई को उन्होंने #DUAgainstOnlineExam ट्रेंड चलाया था जो कि भारत में इस दिन शीर्ष पर रहा।

दिल्ली विश्वविद्यालय करीब 2 लाख स्टूडेंट्स के ऑनलाइन परीक्षा लेने की तैयारी कर रहा है। बहुत बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स इसके मुखर विरोध में हैं। कारण कि बहुसंख्यक स्टूडेंट्स चाहकर भी इस परीक्षा में बैठ पाने में असमर्थ होंगे।

स्टूडेंट्स का कहना है कि ऑनलाइन क्लासेज़ एटेंड करने और असाइनमेंट्स जमा करने में वे पहले ही असमर्थ दिख रहे थे, इसी बीच विश्वविद्यालय प्रशासन ने ऑनलाइन एग्ज़ाम की सूचना जारी कर स्टूडेंट्स को एक अजीब परेशानी में डाल दिया है।

सुविधाओं की कमी के बीच बढ़ रही हैं स्टूडेंट्स की मुश्किलें

ऑनलाइन एग्ज़ाम का विरोध।

पर्याप्त तकनीकी सुविधा, जैसे- टैब्स, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि ना होने के कारण ज़्यादातर स्टूडेंट्स को फोन से ही सब कुछ पढ़ना पड़ता है, करना पड़ता है। लॉकडाउन से पहले छुट्टी होने कारण अधिकांश स्टूडेंट्स अपने घर चले गए थे और उन्हें इस हालात का अंदाज़ा नहीं था इसलिए अपने साथ अपनी किताबें और लैपटॉप लेकर घर नहीं गए थे।

अब जब विश्वविद्यालय की तरफ से यह फरमान सुनाया गया है तो उनके लिए चीज़ें काफ़ी मुश्किल हो गई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में और विशेषकर नॉर्थ ईस्ट के राज्यों और कश्मीर में तो स्थिति इस लिहाज़ से और भी ज़्यादा खराब है।

बीते सप्ताह आइसा छात्र संगठन ने एक सर्वे कराया जिसमें 74% स्टूडेंट्स ने ऑनलाइन परीक्षा के खिलाफ अपनी नाराज़गी जताई।

क्या कहते हैं स्टूडेंट्स?

शिवम शांडिल्य।

दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक अंतिम वर्ष के स्टूडेंट शिवम शांडिल्य ने अपनी समस्या साझा करते हुए कहा, “पहली नज़र में ही ऑनलाइन परीक्षा की व्यवस्था असंवैधानिक है क्योंकि इसमें सभी के लिए स्थिति सामान्य नहीं होगी। अर्थात सभी स्टूडेंट्स को यहां बराबर मौका नहीं मिलेगा।”

शिवम आगे बताते हैं, “मैं व्यक्तिगत अपनी समस्या बताऊं तो मेरे पास अभी लैपटॉप नहीं है जिसके कारण असाइनमेंट्स जमा करने में भी मुझे बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा है और पड़ रहा है। ऐसे समय में जब सिलेबस अधूरी है, किताबें पास में नहीं हैं, अगर ऑनलाइन परीक्षा होती है तो उसे दे पाने में मैं असमर्थ हूं।”

मोतीलाल नेहरू कॉलेज में स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष के स्टूडेंट हिमांशु शुक्ला ने कहा, “मैं ऑनलाइन क्लासेज़ शायद ही किसी तरीके से कर पा रहा हूं, अक्सर यह सुस्त इंटरनेट सेवा के कारण बुरी तरीके से बाधित होता रहता है। गाँवों में रह रहे मेरे कई साथी इससे महरूम रहें।”

वो आगे कहते हैं, “ऐसा समाज जो तकनीकी रूप से इतना विभक्त है, उसे शिक्षा के लिए ऐसी पद्धति कभी नहीं अपनानी चाहिए क्योंकि शिक्षा का अर्थ समानता की ओर कदम बढ़ाना होता है, विभाजन को तोड़ना होता है नी कि उसे और अस्तित्व में लाना या मज़बूत करना।”

पोस्ट ग्रैजुएशन की स्टूडेंट दामिनी कैन का ट्विट।

मिरांडा हाउस में द्वितीय वर्ष की स्टूडेंट मानसी डागर ने कहा, “मौजूदा समय में मेरे पास इंटरनेट की वो व्यवस्था नहीं है जो हॉस्टल में हुआ करती थी। लैपटॉप साथ नहीं होने के कारण मुझे सारे असाइनमेंट्स फोन पर ही करने पड़े। स्टडी मटेरियल्स को फोन पर पढ़कर परीक्षा की तैयारी बहुत ही ज़्यादा मुश्किल हो जाती है।”

वो आगे कहती हैं, “फोन पर छोटे फॉन्ट में उसे पढ़ पाना काफी कठिन है। सबसे बड़ी बात कि जिन चीज़ों का स्टूडेंट्स को अब तक कोई अभ्यास नहीं है, वह ज़बरदस्ती थोपा जा रहा है। परीक्षा के बीच अगर नेट कनेक्टिविटी या कोई और तकनीकी समस्या उत्तपन्न हो जाती है, तो स्टूडेंट्स क्या करें? क्या यूनिवर्सिटी की वेबसाइट इतनी हेवी ट्रैफ़िक झेल पाने में सक्षम है? बहुत सारे सवाल हैं जिन पर प्रशासन को पुनः विचार करना चाहिए और कोई भी ऐसा फैसला ना लिया जाए जिसमें एक भी स्टूडेंट को कोई नुकसान हो।”

भीमराव अंबेडकर कॉलेज में स्नातक तृतीय वर्ष की स्टूडेंट अदिति बताती हैं, “जब नेट अच्छा नहीं चलता है तो स्टूडेंट्स पेपर कैसे डाउनलोड करेंगे, फिर उत्तर पुस्तिका को स्कैन करके कैसे सबमिट करेंगे? ग्रामीण क्षेत्रों, नॉर्थ ईस्ट और कश्मीर में अभी रह रहे स्टूडेंट्स के लिए तो इस परीक्षा में उपस्थित होना नामुमकिन सा हो जाएगा।”

वो आगे बताती हैं, “जनवरी में नॉन टीचिंग स्टाफ की हड़ताल रही, फरवरी में दिल्ली दंगा फिर मार्च से कोरोना वायरस और लॉकडाउन। जब नोट्स ही सही से नहीं हैं तो कैसे लिखेंगे? जब कोई सुविधा ही नहीं है तो परीक्षा में कैसे बैठेंगे?”

छात्रसंघ अध्यक्ष ने कहा कहा?

वीसी को ज्ञापन सौंपते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष अक्षित दहिया।

ऑनलाइन परीक्षा पर दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष अक्षित दहिया ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने भले ही अपनी तरफ से नोटिफिकेशन जारी कर दिया हो लेकिन हम यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करेंगे कि सभी स्टूडेंट्स के साथ न्याय हो। बहुत सारे स्टूडेंट्स अपनी पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय के संसाधनों पर पूरी तरह निर्भर होते हैं लेकिन अभी जब वे अपने गाँव-घर में होंगे तो उनके लिए ऑनलाइन परीक्षा में बैठ पाना बिल्कुल भी आसान नहीं होगा।

वो आगे कहते हैं, “इस बारे में डीयू प्रशासन ने 11 मई को सुझाव मांगे थे फिर 14 मई को ही ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने की नोटिस जारी कर दी गई जो कि बिल्कुल भी न्यायसंगत नहीं है। विश्वविद्यालय प्रशासन को ऐसा कोई भी फैसला नहीं लेना चाहिए जिससे कि एक भी स्टूडेंट को कोई परेशानी हो। हालांकि हम सभी विकल्पों पर अभी बात करने की कोशिश कर रहे हैं। हमने भी स्टूडेंट्स से सुझाव मांगे हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन से बातचीत करके निश्चित ही ऐसा कोई हल निकाला जाएगा जो सभी स्टूडेंट्स के हित में हो।”


 

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