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कोरोना काल में कहीं पीछे ना छूट जाए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा

covid impact on girls education in india

covid impact on girls education in india

कोरोना वायरस ने देश ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है। देश व समाज के हर क्षेत्र में कोरोना वायरस की वजह से बुरा असर पड़ा हुआ है। काम काज ना होने की वजह से बहुत सारे लोगों को सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करके भूखे पेट अपने घर वापस लौटना पड़ा।

महामारी के बुरे परिणाम महिलाओं को ही झेलने पड़ते हैं

रोज़गार ना होने की वजह से बहुत सारे लोग भुखमरी की मार भी झेल रहे हैं। इस माहामारी की वजह से मानो ज़िन्दगी ठहर सी गई हो लेकिन‌ इतिहास में झांककर देखने से साफतौर पर यह नज़र आता है कि चाहे जंग हो या महामारी, इसके सबसे बुरे परिणाम लड़कियों और महिलाओं को ही झेलने पड़ते हैं।

आज प्राइमरी स्कूल से लेकर बड़ी से बड़ी यूनिवर्सिटी कोरोना वायरस की वजह से बंद हैं। परिणामस्वरूप शिक्षा पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ रहा है। वैसे पहले से ही लड़कियों की शिक्षा और आकांक्षाओं को समाज द्वारा कम महत्व दिया जाता रहा है।

अत: वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से बच्चों तक शिक्षा पहुंचाई जा रही है। गौरतलब है कि घरों में लड़कियों तक मोबाइल की पहुंच ना के बराबर है। ऐसे में लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रहना पड़ रहा है।

लड़कों के मुकाबले लड़कियों को हमेशा नज़रंदाज़ किया जाता रहा है

घरों में लड़कियों पर घरेलू काम का बोझ उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर थका देता है। दूसरी तरफ, मोबाइल की पहुंच ना होने की वजह से ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने का मौका भी उनके हाथ नहीं लग पाता है।

अन्य पहलुओं की बात करें तो जिस तरह महामारी की वजह से आर्थिक संकट पैदा हो चुके हैं, ऐसे में घरों में आज भी लड़कियों की पढ़ाई से ज़्यादा पैसे लड़कों की पढ़ाई पर खर्च किए जाते हैं, क्योंकि सामाजिक मान्यताओं के अनुसार लड़का ही बुढ़ापे का सहारा है।

लड़कियों का स्कूलों से ड्रॉप आउट होने का खतरा बढ़ गया है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

आर्थिक संकट में अधिकांश लड़कियों का स्कूलों व कॉलेजों से ड्रॉप आउट होने का खतरा बढ़ जाता है। ड्रॉप आउट होने वाली लड़कियों पर जल्दी शादी करने का दबाव उनके सपनों की उड़ान के बीच एक और बाधा बन सकती है।

वहीं दूसरी तरफ ऐसी बहुत सारी संस्थाएं हैं, जो ज़मीनी स्तर पर लड़कियों के अधिकार के लिए लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रही हैंं। कुछ संस्थाएं ऐसी भी हैं, जो दूर-दराज़ के क्षेत्रों से आने वाली लड़कियों के लिए फ्री में बस सेवाएं दे रही हैं‌ लेकिन कोरोना वायरस की वजह से ऐसी संस्थाओं को अनुदान राशि की कमी से गुज़रना पड़ रहा है।

डर है “बेटी पढ़ाओ” का नारा पीछे ना छूट जाए

बहुत सी फंडिंग एजेंसियों ने इस तरह के कार्यों को फंड देने का फैसला किया है। लड़कियों की शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने का अभियान पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है, जिसने इस अभियान को एक मुकाम तक पहुंचाया है।ऐसी स्थिति में संभवतः बेटियों की भलाई का यह अभियान कुछ साल और पीछे चला जाएगा।

विचारणीय मुद्दा यह है कि क्या ऐसी स्थिति में हम हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाएं या फिर उस स्थिति में लड़कियों की शिक्षा और सपनों को ध्यान में रखते हुए नए रास्ते तलाशे जाएं?

महिला शिक्षा देश के विकास में मुख्य रूप से सहायक है

हम जेंडर डिस्क्रिमिनेशन या फिर किशोर-किशोरियों के विकास के लिए कार्य नहीं करते तो इससे अन्य मुद्दो पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि लड़कियों की शिक्षा का मुद्दा अकेला नहीं है। यह मुद्दा देश के आर्थिक विकास और स्वास्थ्य से भी जुड़ा है।

इसलिए ऐसे मुद्दों पर कार्य करने के लिए फंडिंग एजेंसियों को महामारी के दौर में भी साथ देना ही होगा। अच्छी नीतियां बनाकर सरकार को भी बड़ी भूमिका निभाने की ज़रूरत है।

पंचायत को अपनी सक्रिय भूमिका में आना होगा

आज भी देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में रहता है। अगर पंचायत अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए ग्राम पंचायत डेवलपमेंट प्लान के तहत लड़कियों की शिक्षा को भी मुख्य एजेंडे में रखे, तो सतत विकास-4 का लक्ष्य हासिल करने की राह आसान हो जाएगी।

इसके साथ-साथ स्कूल अध्यापकों का शिक्षा को लेकर माता-पिता को भी सक्रिय भूमिका में लेकर आने के लिए उनसे एक अच्छा संवाद बनाए रखना महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। साथ ही फंडिंग एजेंसियों को भी यह समझना पड़ेगा कि कोई एक मुद्दा दूसरे मुद्दे से कैसे जुड़ा हुआ है।

यह सच है कि विश्व एक बहुत बड़े संकट से गुज़र रहा है लेकिन इस संकट के समय में बड़ी तस्वीर को भी ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है। कोरोना वायरस देर सवेर ही सही मगर खत्म तो हो ही जाएगा। इसके कारण लड़कियों के सपने, उनकी शिक्षा खत्म नहीं होनी चाहिए।

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