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रेप की धमकी देना एक ‘न्यू नॉर्मल’ क्यों बन गया है?

स्टैंड-अप कॉमेडी ने भारत में पिछ्ले एक-दो दशकों में दर्शकों के बीच अपनी लोकप्रियता बनाई है। कॉमेडी के नाम पर लोग कई बार लोग थोड़े असंवेदनशील हो जाते हैं। उनके व्यक्तव्यों से कुछ लोगों को बुरा लगता है, कुछ को नहीं। जिनको बुरा लगता है वो आलोचना करने से पीछे भी नहीं हटते।

अग्रिमा जोशुआ भी एक स्टैंड-अप कॉमेडियन हैं। महिला हैं। अब आगे की पूरी बात इसी वाक्य पर आधारित है।

गिरफ्तारी के बाद शुभम मिश्रा (दाएं)

सालभर पुराने विडियो पर हुआ है बवाल

यह मामला करीब साल भर पुराने महिला कॉमोडियन अग्रिमा जोशुआ के एक वीडियो से जुड़ा है। इसमें वह छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति के बारे में टिप्पणी कर रही हैं। यह वीडियो एक लाइव कार्यक्रम के दौरान शूट किया गया था। हाल के दिनों में उनका यह वीडियो एक बार फिर से सोशल मीडिया पर शेयर किया जाने लगा, जिसके बाद उन्हें सोशल मीडिया पर धमकियां मिलने लगीं।

अग्रिमा ने वीडियो अपनी टाइमलाइन से हटा लिया और इसके लिए महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे, प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख, राज ठाकरे और नितिन राउत समेत सभी लोगों से माफ़ी भी मांगी।

सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा, “छत्रपति शिवाजी महाराज को मानने वालों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए मैं माफी चाहती हूं। उस महान नेता के प्रशंसकों से मैं माफी मांगना चाहती हूं। मैंने अपना वीडियो हटा लिया है।”

लेकिन यह मामला उनकी माफी पर नहीं थमा। गुजरात के शुभम मिश्रा नाम के एक युवक ने उन्हें भद्दी गालियां देते हुए सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट किया।

खुले आम दी गई रेप की धमकी

वीडियो में शुभम मिश्रा जो कुछ भी कह रहा है वह बेहद आपत्तिजनक है। शुभम ने अपने वीडियो में अग्रिमा को खुले तौर पर रेप की धमकी दी है। रेप का तरीका तक बताया। एक पुरुष का एक महिला के किसी व्यंग्य पर आहत होना और आलोचना करना नॉर्मल बात है लेकिन आलोचना के नाम पर गालियां और रेप थ्रेट देना पितृसत्तात्मक सोच का एक उदाहरण है।

अग्रिमा को जिस तरह की परेशानियां और उलाहनाएं सोशल मीडिया में झेलनी पड़ीं, वह पितृसत्ता के कारण ही है। एक समाज के रूप में हम सब अग्रिमा के गुनाहगार हैं। कहीं-न-कहीं हमारी अनदेखी, हमारे दिमागों में बैठी पितृसत्ता ही इसकी ज़िम्मेदार है।

शुभम मिश्रा रेप थ्रेट देने वाला लड़का

रेप की धमकी देना एक न्यू नॉर्मल क्यों बन गया है?

भारत में रेप की खुलेआम धमकी एक ‘न्यू नॉर्मल’ बन चुका है। रेप की धमकी देने वाले को किसी बात का भय नहीं होती है। इतनी घटिया बातें करते हुए भी उसके मन में एक आत्मविश्वास है, निर्भयता है।

इसका संबंध सीधा-सीधा हमारी लचर कानूनी और न्यायिक व्यवस्था से है। जब भीड़ ही ऐसे संवेदनशील मामलों में अपना पक्ष हिंसा से ज़ाहिर करती है और ऐसा करने के बाद कुछ होता तक नहीं है, तो स्वाभाविक-सी बात है कि ऐसे लोगों का आत्मविश्वास बढ़ेगा ही।

महिलाओं को हमेशा ऐसी परिस्थितयों के बाद कहा जाता है, क्या मिल गया ये सब करके ? क्यों करती हो कॉमेडी, क्यों लिखती हो सोशल मीडिया पर? ये सारे सवाल आगे आने वाली महिलाओं के पैरों में बेड़ियों के समान हैं।

जब भी कोई महिला आगे बढ़ती है। अपनी बात मुखरता से रखती है। अपने दिमाग और मन में खुद को महिला से पहले एक इंसान समझती है। तब उसे समाज से मिलती है रेप की धमकियां और भद्दी-भद्दी गालियां।

क्यों सवालों को घेर में हमेशा एक महिला ही रहती है?

महिलाओं के व्यक्तित्व को सोशल मीडिया और चाय के नुक्कड़ से लेकर किसी कॉलेज के बॉयज़ हॉस्टल के कमरों तक तार-तार कर दिया जाता है। उन्हें कोसा जाता है, पढ़ने-लिखने के लिए, उनके काम करने के लिए, खुद के पैरों पर खड़े होने के फैसले के लिए उन्हें अपमानित किया जाता है। उन पर सामाजिक ढांचे को बिगाड़ने के इल्ज़ाम लगते हैं।

क्यों? क्योंकि जब महिलाएं अपने अधिकारों की बात करती हैं, उनके अंदर एक डर होता है कि कहीं उनसे उनके अधिकार जो इतने लंबे संघर्ष के बाद मिले वो छीन ना लिए जाएं। शायद आपकी एक गाली एक पुरुष के लिए उतनी भयानक ना हो जितनी एक महिला के लिए होगी, क्योंकि सवालों के घेरों में हमेशा महिलाएं ही आती हैं।

पितृसत्तात्मक समाज के खिलाफ बुलंद करनी होगी आवाज़

ये सभी बातें एक ही श्रोत से निकलती हैं उसका नाम है पितृसत्ता। इसे आम होते देख महिलाओं के अधिकार और ना जाने कितने सालों का संघर्ष ताख पर रख दिया गया है।

अग्रिमा के साथ जो हुआ वो दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन आश्चर्य करने लायक नहीं है। लड़कियों और महिलाओं को पहले भी रेप की धमकियां मिलती रही हैं। आगे भी मिलेंगी लेकिन आप इनके लिए जब तक खुद ग्लानि महसूस नहीं करेंगे, तब तक आपको फर्क नहीं पड़ेगा।

हाँ, शायद आपकी बहन, बेटी, दोस्त तक अगर यह पहुंचे तो थोड़े आहत हो जाएंगे लेकिन वो भी एक पुरुष के तौर पर। सिर्फ इसलिए क्योंकि आपका स्वाभिमान अपनी महिला साथी में निहित है। इसलिए अगली बार यदि शुभम मिश्रा जैसे लोग आस पास नज़र आएं, तो उन्हें रोकिए और बताईए कि वो जो कर रहे हैं, वह क्यों गलत हैं? उनके खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद कीजिए।

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