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कैंसर वॉरियर्स की कहानी, उनकी जुबानी

कैंसर वॉरियर्स की कहानी, उनकी जुबानी

साल दर साल पूरे विश्व में कैंसर की बीमारी जड़ जमा रही है, इसमें हमारा देश भी अछूता नहीं है। हमारे देश में चार फरवरी का दिन विश्व कैंसर दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वैसे कैंसर के चार स्टेज होते हैं जिसमें तीन स्टेज तक मरीज को बचा लिया जाता है, लेकिन चौथे स्टेज में मरीज के बचने के चांस 50-50 होते हैं। रेगुलर ट्रीटमेंट और दवाईयों की मदद से चौथे स्टेज के मरीजों को बचाया जा सकता है।

डब्ल्यूएचओ( विश्व स्वास्थ्य संगठन ) के मुताबिक भारत में करीब 25 लाख लोग कैंसर से पीड़ित हैं। हमारे देश में हर वर्ष करीब 7 लाख कैंसर के नये मामले जुड़ जाते हैं और करीब साढ़े पांच लाख लोगों की इस बीमारी से मौत हो जाती है।

महिलाओं में होने वाले कैंसर में ब्रेस्ट कैंसर और सर्वाइकल कैंसर जबकि पुरुषों में ओरल कैंसर और लंग कैंसर कॉमन हैं। अगर हम बिहार की बात करें तो यहां भी हर साल 85 हजार नये कैंसर मरीज आते हैं। यहां एक समय में करीब 2 लाख 75 हजार कैंसर के मरीज सर्वाइव कर रहे होते हैं.

सास की सजगता से कैंसर का पता चला

बेतिया की रहने वाली लालसा देवी के गले का अचानक सूजन बढ़ने लगा तब उनकी सास बदामी देेवी को इसकी चिंता हुई और वे उसे लेकर वीरगंज स्थित हॉस्पिटल लेकर गईं, जहां उन्हें इलाज के लिए आइजीआइएमएस रेफर किया गया। पिछले साल जनवरी में उन्हें पता चला कि उन्हें स्टेज थ्री थाइरॉयड कैंसर हैं, उनके पति किसान और उनके तीन छोटे बच्चे भी हैं।

ऐसे में पूरा परिवार इस खबर से डर गया लेकिन कैंसर की इस जंग में सभी ने लालसा का साथ देने की ठानी लगातार दवाईयां खाने के बाद इनका ऑपरेशन हुआ और आज वे आम लोगों की तरह जीवन बिता रही हैं। वैसे इलाज के लिए उन्हें कई जगहों से कर्ज लेना पड़ा और साथ ही मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष से भी उन्हें मदद मिली है।

दवाईयों की मदद से ठीक हुआ ओरल कैंसर

गाय घाट के रहने वाले बिनोद शॉ किशोर पेशे से ठेला चलाते हैं। उन्हें खैनी खानी की आदत थी, पिछले साल अक्टूबर में उनके निचले होंठ के नीचे फफोला हुआ और उससे लगातार खून आने लगा। लोगों के कहने पर उनकी पत्नी उन्हें आइजीआइएमएस लेकर गईं जहां उन्हें मुंह का कैंसर बताया गया।

पहला स्टेज होने की वजह से डॉक्टरों ने उन्हें दवाईयों के साथ खैनी खाने से मना किया और लगातार इलाज की वजह से उनका मुंह का कैंसर पूरी तरह से ठीक हो चुका है। बिनोद बताते हैं कि एक गलत लत की वजह से उनकी जिंदगी पर बन आयी थी अब वे अपने जैसे लोगों को तंबाकू , गुटखा, एवं खैनी आदि के होने वाले नुकसान के बारे में बताकर जागरूक करते हैं।

पिता के सपोर्ट से जीती कैंसर की जंग

सहरसा जिले की रहने वाली शिवांगी जायसवाल अभी ग्रेजुएशन के सेकेंड ईयर में हैं। वे बताती हैं कि पिछले साल जनवरी में उनके बाएं हाथ के बांह के पास सूजन हो गया था। जिससे उन्होंने वहां के डॉक्टरों को उसके बारे में दिखाया तो उन्होंने घाव बताकर दो सुई लगा दीं, जिसकी वजह से पूरे शरीर में सूजन हो गयी। पिता के कहने पर उन्होंने समस्तीपुर के डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने तुरंत पटना रेफर कर दिया। वहां जाकर पता चला कि उन्हें घाव नहीं है बल्कि स्टेज थ्री का ट्यूमर है, जिसकी पकड़ कंधे से बढ़ कर हाथ तक आ गयी है।

लॉकडाउन की वजह से पहले दवाइयां दी गयी फिर नवंबर 2020 में डॉक्टरों ने उनके हाथ से ट्यूमर निकाल दिया है। वे आगे बताती हैं कि डॉक्टर ने जब कहा कि इलाज हो जायेगा तो मैंने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ इस जंग को चुनौती की तरह लिया और जिंदगी के इस मुश्किल मोड़ पर पिता अर्जुन जायसवाल का भरपूर सपोर्ट मिला। अभी भी वे लगातार डॉक्टर के पास नियमित फॉलोअप के लिए जाती हैं।

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