प्रस्तावना (INTRODUCTION)
हिंदी हमारे देश भारत की मातृभाषा है। भारत में या तो लोग हिंदी समझते हैं या अपनी क्षेत्रीय भाषा। कई बार देखा गया है कि भाषा के अभाव में लोगों को संचारित करने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जैसा कि हम जानते हैं कि हम लिख कर, बोल कर और अपने इशारों के माध्यम से संचार स्थापित करते हैं।
हमें चाहे व्यापार का ज्ञान हो या किसी और विषय का सबसे पहले हमें यह ध्यान रखना चाहिए, कि अगर हम अच्छा परिणाम चाहते हैं तो हमें हिंदी या क्षेत्रीय भाषा में अपने व्यापार का संचार करना होगा। हमें यही देखने को मिला है नेटवर्क मार्केटिंग के क्षेत्र में। जब तक नेटवर्क मार्केटिंग के क्रियाकलाप सिर्फ अंग्रेजी में होते थे, तब तक इस इंडस्ट्री ने इतना विकास नहीं किया था।
जबसे इनके क्रियाकलाप हिंदी और स्थानीय भाषा में शुरू हुए हैं, तबसे नेटवर्किंग मार्केटिंग के व्यापार में बहुत तेजी से विकास हो रहा है। नेटवर्क मार्केटिंग फेस-टू-फेस कम्यूनिकेशन के कारण ही सफल होता है। इस लिए हमें अपने व्यापार के लिए हिंदी या स्थानीय भाषा में ही संवाद स्थापित करना चाहिए। उत्पाद और सेवाओं का विपणन आम तौर पर सीधे उपभोक्ताओं और संभावित व्यावसायिक भागीदारों को संबंधों के हवाले और मौखिक प्रचार विपणन या जन संपर्क के माध्यम से किया जाता है।
एक सामान्य भारतीय या फिर दुनिया के किसी भी देश का नागरिक सुबह जब से अपनी आंखें खोलता है और रात को बिस्तर में जाने तक मौखिक विज्ञापनों से साक्षात्कार करता रहता है। जबसे मानव का अस्तित्व आया तब से ही मानव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विज्ञापन कर रहा है। समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा, होर्डिंग, बिलबोर्ड, कैलेंडर, पेन, पुस्तक, मोबाइल, वाहनों-ट्रेन आदि पर लगे चलते-फिरते विज्ञापन, दीवारों आदि पर तो विज्ञापन नजर आता ही है, साथ ही साथ हर इंसान मौखिक विज्ञापन भी करता रहता है।
यह मानव स्वभाव है कि जब इंसान अपने किसी परिचित, रिश्तेदार से मिलता है, फोन पर बात करता है, सोशल साइट, इंटरनेट या फिर किसी प्रकार से संपर्क में आता है तो सबसे पहले हाल-चाल ही पूछता है। सामने वाले के बारे में हाल-चाल लेने के बाद अपनी जिंदगी से जुड़ी सभी तरह की बातें एक-दूसरे के साथ बांटते हैं। अगर सामने वाला किसी बीमारी, सामाजिक या घरेलू समस्या या अन्य किसी बात का जिक्र करता है तो यह मानव स्वभाव है कि प्रतिउत्तर में ही जाने-अनजाने विज्ञापन की शुरुआत हो जाती है।
जैसे की बातों-बातों में अगर कोई किसी मर्ज का जिक्र करता है तो भले हमें कोई डॉक्टर हमें कमीशन दे या ना दे, कोई दवाई कंपनी हमें कमीशन दे या ना दे पर, हम सामने वाले को अपने प्रतिउत्तर में यह जरूर बताते हैं कि आप फलां डॉक्टर को दिखाइए या फलां कंपनी की दवाई खाइए तो आराम होगा आदि। यानी की हम सिर्फ एक ही दिन में कई डॉक्टर, दवाई, सौंदर्य-प्रसाधन, स्कूल-कॉलेज, कंपनी, इंसान, मशीनरी, चैनल आदि का विज्ञापन कर देते हैं। यानी की इतने मीडियम के आ जाने के बाद, इतनी बड़ी और महान तकनीकी खोजों के बाद भी विज्ञापन की यह प्रणाली यानी की अंतर्वैक्तिक संचार की यह पद्धति आज भी उसी गति से चल रही है।
अंतर्वैक्तिक संचार को नेटवर्क मार्केटिंग कंपनियों ने ताकत के रूप में परिणित किया और उसे वर्तमान में आधुनिकता के शिखर तक पहुंचा दिया है। यह कहावत भी यहां चरितार्थ हो गई की – आम के आम गुठलियों के दाम। इसके चलते ना सिर्फ विज्ञापन करने का तरीका बदला,बल्कि इसने शहर से लेकर गांव तक लोगों को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर मजबूत भी बनाया है। लोगों की जीवनशैली को बदलकर नकारात्मक और मायूस जिंदगी में सकारात्मकता का पुट भरा है। नेटवर्क मार्केटिंग कंपनियों की संचार प्रणाली ने सभी को आकर्षित किया है।
नेटवर्क मार्केटिंग का इतिहास
नेटवर्क मार्केटिंग को MLM (Multi-level marketing) और Direct Selling भी कहा जाता है। नेटवर्क मार्केटिंग इंडस्ट्री आज अरबों डॉलर की इंडस्ट्री हो चुकी है। दुनिया भर में 9 करोड़ से ज्यादा लोग इससे जुड़े हुए हैं। लाखों लोग हर वर्ष जुड़ते जा रहे हैं। डॉ. कॉर्ल रेनवर्ग (Dr.Carl Rehnborg) नेटवर्क मार्केटिंग के जनक हैं। डॉ. कॉर्ल रेनवर्ग 1917 से 1927 तक चीन में रहे, यहां इन्होंने पोषक पूरक (Health supplement) के फायदे के बारे में जानकारी हासिल की।
चीन में डॉक्टर ने देखा कि यहां के लोग अपने इलाज़ के लिए जड़ी-बूटियों का बहुत इस्तेमाल करते हैं। अमेरिका वापस लौटने के बाद रेनवर्ग ने 1929 में कैलिफोर्निया विटामिन कंपनी की स्थापना की। बाद में सन 1939 में अपनी कंपनी को नए नाम से लॉन्च किया था और इसका नाम रखा न्यूट्रीलाइट (Nutrilite)। 6 साल बाद अपनी सेल बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने ग्राहकों को ही अपना डिस्ट्रीब्यूटर बनाया और इस योजना को नाम दिया मल्टी लेवल मार्केटिंग (MLM), और 6 साल बाद 1945 से ही नेटवर्क मार्केटिंग, डायरेक्ट सेलिंग या मल्टी लेवल मार्केटिंग की शुरुआत मानी जाती है।
डॉ. उज्जवल पाटनी ने भी अपनी पुस्तक नेटवर्क मार्केटिंग जुड़ो, जोड़ो और जीतो में समझाया है कि लोगों का नेटवर्क बनाकर हम व्यापार के उस जाल या फिर नेटवर्क से अमीर बन सकते हैं। (संतोष मौरी, नेटवर्क मार्केटिंग का इतिहास, यूट्यूब)
भारत में नेटवर्क मार्केटिंग
भारत में व्यवस्थित तरीके से नेटवर्क मार्केटिंग की शुरुआत 5 मई 1998 में एमवे के साथ मानी जाती है। एक साल बाद ही एमवे ने 1999 में 99 करोड़ का व्यापार कर लिया था। वर्तमान में भारत में 10 लाख IBOs यानी डिस्टीब्यूटर हैं। 2012 के अनुसार एमवे का भारत में 2288 करोड़ से ज्यादा का व्यापार हो चुका था।
विपणन युग का वर्गीकरण
.कृषि युग (1800 ईसवी पूर्व)
वस्तु विनिमय प्रणाली
.औद्योगिक युग (1800 ईसवी – 1970 ईसवी)
परिवार के सदस्यों द्वारा संचालित दुकानें
डिपार्टमेंटल स्टोर्स
सुपर मार्केट/हाइपर मार्केट
फ्रेंचायजी
.सूचना युग (1980 के बाद)
टेली मार्केटिंग
टीवी शॉपिंग
डायरेक्ट सेलिंग
ई-कॉमर्स
एमवे और ब्रिट वर्ल्डवाइड का इतिहास
विकीपीडिया से उपलब्ध जानकारी एवं कई अन्य लेखों के अनुसार एमवे (Amway) को दुनिया में व्यवस्थित और आधुनिक तरीके से नेटवर्क मार्केटिंग शुरू करने का श्रेय जाता है। एमवे की स्थापना 1949 में “JaRi Corporation” के नाम से की गई थी। बाद में 1959 में इसका नाम बदलकर एमवे कॉर्पोरेशन कर दिया गया। 1999 में इसका पुनर्गठन करके इसका नाम Alticor कर दिया गया।
1999 में ही अल्टीकॉर ने एमवे के लिए सिस्टर कंपनी Quixtar की स्थापना की। यह पुनर्गठन इंटरनेट को ध्यान में रखकर किया गया था। 1 सितंबर 2008 को पूरे ग्रुप को एक करके एमवे ग्लोबल नाम दे दिया गया। बाद में 2010 में नाम बदलकर Amway कर दिया गया।
1945 में कंपनी चलाने वाले ली माइटिंगर और विलिमय कैसलबेरी ने न्यूट्रिलाइट कंपनी के वितरक (Distributer) बनकर न्यूट्रिलाइट विटामिन उत्पादों का विपणन करना शुरू कर दिया। “माइटिंगर और कैसलबेरी ने मिलकर मल्टी लेवल मार्केटिंग का सिद्धांत तैयार किया और उसी सिद्धांत पर आज भी मल्टी लेवल मार्केटिंग या नेटवर्क मार्केटिंग या डायरेक्ट सेलिंग कंपनियां काम कर रही हैं।”
इसमें साफ तौर पर उल्लेख कर दिया गया है, कि वितरक को उसके द्वारा किए गए विपणन के बदले उसे निश्चित प्रतिशत में कमीशन दिया जाएगा और इतना ही नहीं उसके साथ या उसके नीचे जो लोग या वितरक काम करेंगे, उन्हें भी उसके बदले एक निश्चित प्रतिशत में कमीशन दिया जाएगा। माइटिंगर पेशे से सेल्समैन और कैसलबेरी एक मनोवैज्ञानिक थे। 1940 और 50 के दसक में तक इस कंपनी ने हर महीने 20 अमेरिकी डॉलर प्रति महीने के हिसाब से न्यूट्रिलाइट के उत्पादों का विपणन किया।
माइटिंगर और कासलबेरी के नेटवर्क मार्केटिंग कॉर्पोरेशन न्यूट्रिलाइट में रिच डेवॉस (Rich DeVos) एवं जे वॉन एंडल (Jay Van Andel) ने डिस्ट्रीब्यूटर के तौर पर कार्य शुरू किया। 6 सितंबर 1949 को रिच डेवॉस एवं जे वॉन एंडल ने मिशिगन में “JaRi” (जा री) कॉर्पोरेशन की स्थापना कर न्यूट्रिलाइट विटामिन का विपणन शुरू कर दिया।
1950 के दशक में कुछ कानूनी पेंच फंस जाने के कारण रिच डेवॉस एवं जे वॉन एंडल ने दो हजार (2000) डिस्ट्रीब्यूटर्स के साथ न्यूट्रिलाइट से अलग होकर खुद के कॉर्पोरेशन “JaRi” से ही कुछ उत्पादों का उत्पादन और विपणन शुरू कर दिया। जिसे “अमेरिकन वे एसोसिएशन” कहा जाता था, बाद में इसका नाम बदलकर “अमेरिकन डिस्ट्रीब्यूटर्स एसोसिएशन” कर दिया गया। अमेरिकन डिस्ट्रीब्यूटर्स एसोसिएशन के पहले अध्यक्ष “बाल्टर बास” थे।
नवंबर 1959 में रिच डेवॉस एवं जे वॉन एंडल ने एमवे सेल्स कॉर्पोरेशन और एमवे सर्विस कॉर्पोरेशन की स्थापना की। 1963 में “JaRi” कॉर्पोरेशन का नाम बदलकर एमवे कॉर्पोरेशन और 1 जनवरी 1964 में एमवे सेल्स कॉर्पोरेशन, एमवे सर्विस कॉर्पोरेशन और एमवे मेनूफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन को मिलाकर एमवे कॉर्पोरेशन नाम दे दिया गया। 1959 में ही एमवे ने न्यूट्रिलाइट को खरीद लिया और वर्तमान में आज भी एमवे और क्विकस्टार (Quixtar) में न्यूट्रिलाइट नाम से ही बिक रहा है।
पारंपरिक विपणन से नेटवर्क मार्केटिंग की ओर
बिजनेस टुडे मैगजीन में 22 सितंबर-6 अक्टूबर 1996 में “परीना कवात्रा” का लेख “द न्यू मल्टी लेवल मार्केटिंग मॉडल” के अनुसार “मल्टी लेवल मार्केटिंग की शुरुआत 1886 में ही हो गई थी। डोर-टू-डोर सेल्समैन “डेविड एच. मैक कलन” ने कैलिफोर्निया परफ्यूम कंपनी की नींव रखी और मल्टी लेवल मार्केटिंग विचारधारा का प्रयोग कर अपनी सेल्स टीम तैयार की।
इस कंपनी की पहली महिला सेल्स लेड़ी “श्रीमती पी.एफ.ई. एल्बी” ने न सिर्फ परफ्यूम का विपणन किया बल्कि अन्य महिलाओं को भी इसमें शामिल किया। मैक कलेन ने अपनी अगली कंपनी की स्थापना 1928 में की जिसे एवोन नाम से जाना जाता है। इस तथ्य के बारे में यह जानकारी तो सत्य है कि एवोन कंपनी की स्थापना इसके पहले हो चुकी थी, पर यह कंपनी पहले परंपरागत मार्केटिंग में थी और न्यूट्रिलाइट के बाद ही इसने डायरेक्ट सेलिंग की विचारधारा को अपनाया।
दुनिया की कुछ प्रमुख मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियां
कंपनी स्थापना वर्ष
Amway 1959
Melaleuca 1985
Usana 1992
Nu Skin 1994
Isagenix 2002
Forever Living 1978
Legal Shield 1972
CAN 1993
Herbalife 1980
4Life 1998
Advocare 1993
5LINX 2001
Synergy WorldWide 1999
Arbonne 1980
Xango 2002
Nature’s SunShine 1972
Morinda 1994
Mannatech 1994
Shaklee 1956
Nikken 1975
Sunrider 1982
Freelife 1995
Neways 1992
Juice Plus (NSA) 1970
GNLD 1958
विषय का चुनाव क्यों?
संचार का दायरा और महत्व सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। आज सिर्फ विचार और भावनाओं का ही आदान-प्रदान भर नहीं रहा, बल्कि विपणन समेत समाज के हर क्षेत्र में संचार मौजूद है। इस लिए पहले यह पता करना जरूरी था कि भारत में अपने व्यापार को चलाने के लिए किस भाषा में संचार किया जाए? खासकर विपणन व्यवस्था में क्रेता-विक्रेता के मध्य जो एक मधुर रिश्ता बना है, उसमें संचार अपना सबसे बड़ा रोल अदा कर रहा है।
इसीलिए वर्तमान में आज विज्ञापनों की कंपनियां अपने नए-नए तरीके और हर क्षेत्र में सुधार कर रही हैं और विज्ञापन को उपभोक्ता फ्रेंडली बनाया जा रहा है। हम अपने आस-पास देखते हैं कि विपणन संचार क्रियाओं पर आधारित है और संचार प्रत्यक्ष विपणन में अपना बहुत महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहा है। संचार दक्षता, आवश्यकता, विश्वसनीयता, आकर्षकता आदि का आधार बन गया है। इस लिए हमें इस विषय का चुनाव संचार के नए आयाम को देखकर एवं उसे अच्छे तरह से समझ कर करना पड़ता है।
आज वर्तमान में सभी कंपनियां संचार पर आधारित हैं, इसलिए मंदी के समय इसका असर आसानी से देखा जा सकता है, जिसके चलते बड़ी-बड़ी कंपनियां बंद तक हो जाती हैं। किसी भी वस्तु का निर्माण करना तो आसान है पर उसका विपणन करना कठिन है। लेकिन, इस कठिन काम (विपणन) को भी आसान बनाने का काम संचार करता है।
विपणन का कार्य जन संपर्क (PR – पब्लिक रिलेशन) से भी एक कदम आगे का होता है, जो कि उपभोक्ता को किसी भी सामान को खरीदने के लिए बाध्य करता है। संचार के चार प्रकार हैं :– (1) व्यक्तिगत संचार – (Intra Personal Communication), (2) अंतर्वैक्तिक संचार – (Inter Personal Communication), (3) समूह संचार – (Group Communication) और (4) जन संचार (Mass Communication)।
डायरेक्ट सेलिंग, नेटवर्क मार्केटिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग आदि इस तरह की एक ही प्रकृति वाली कंनियां मौखिक प्रचार विपणन यानी अंतर्वैक्तिक संचार प्रणाली का सहारा लेती हैं, जो सबसे पुरानी संचार प्रणाली है। अभी तक के प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि नेटवर्क मार्केटिंग की संचार प्रणाली पर बहुत कम या ना के बराबर शोध कार्य हुए हैं। अत: इस विषय से जुड़े शोध कार्यों में तेजी लानी है।
दुनिया के जाने-माने लेखक (और रिच डैड पुअर डैड पुस्तक के लेखक) और मोटिवेटर रॉबर्ट टी. कियोसाकी ने नेटवर्क मार्केटिंग व्यापार को “21वीं सदी का बिजनेस” कहा है।
उद्देश्य एवं महत्व (Importance and objectives of research)
ऋग्वैदिक काल से लेकर आज तक हमारे समाज के हर क्षेत्र में अंतर्वैयक्तिक संवाद प्रणाली का सबसे अहम रोल रहा है। एक बहुत ही प्रचलित कहावत है कि भारत में सबसे आसानी से राय मिल जाती है। भारत ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा मानव स्वभाव है, कि इंसान सुबह बिस्तर छोड़ने के साथ-साथ रात को फिर बिस्तर में जाने तक जाने-अनजाने दिनभर में कई चीजों और सेवाओं का विज्ञापन कर डालता है, जबकि उस विज्ञापन से उसे आय कुछ नहीं होती।
इसके लिए इसकी सबसे बड़ी बानगी गाँवों में देखने को मिलती है, जहां पूरी जानकारी ना होने के बावजूद भी लोग आधी-अधूरी जानकारी देने में अपना पूरा दिन व्यतीत कर देते हैं और उसका कोई परिणाम भी नहीं निकलता है। अंतर्वैक्तिक संवाद प्रणाली के माध्यम से ऐसे समय का सदुपयोग कैसे किया जा सकता है और 21वीं सदी में भी अलग-थलग रह रहे लोगों के जीवन शैली में कैसे परिवर्तन लाया जा सकता है? इसके लिए भी यह महत्वपूर्ण है। क्योंकि, आज भी भारत या मध्यप्रदेश में कई ऐसे गांव हैं, जहां पर किसी भी प्रकार का संचार माध्यम उपलब्ध नहीं है।
कहीं पर भौगोलिक स्थिति के कारण टेलीविजन, रेडियो, इंटरनेट आदि नहीं पहुंच पाते तो कहीं पर यातायात ना होने के कारण समाचार-पत्र नहीं पहुंच पाते। ऐसे में अंतर्वैक्तिक संवाद माध्यम सबसे अहम रोल अदा कर सकता है, जिसमें कुछ लोगों को शिक्षित-प्रशिक्षित करके शेष लोगों को मुख्य धारा में लाया जा सकता है, जैसे की पहले की सरकारें प्रौढ़ शिक्षा और नीलियम केंद्र चलाकर ग्रामीणों और पिछड़ों तक शिक्षा पहुंचाती थीं।
आजादी के पहले जब कम ही लोग पढ़े-लिखे होते थे, उस दौरान हमारे क्रांतिकारी गांव, गली, कूचों में जाकर लोगों को गोलबंद करते थे और लोगों को देश की खबर बताते थे और अपनी रणनीति बताया करते थे। 70 फीसदी से ज्यादा भारत आज भी गांव में रहता है। देश की करीब 64 फीसदी जनसंख्या की कृषि कार्यों में संलग्नता तथा कुल राष्ट्रीय आय से लगभग 27.4 फीसदी भाग के स्रोत के रूप में कृषि महत्वपूर्ण व्यवसाय हो गई है।
देश के कुल निर्यात में कृषि का योगदान 18 फीसदी है। कृषि ही एक ऐसा आधार है, जिस पर देश के 55 लाख से भी अधिक गांवों में निवास करने वाली 75 फीसदी जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका प्राप्त करती है। इस लिए आज भारत जरूरी है कि भारत के लोगों को हिंदी या फिर उनकी अपनी भाषा में फेस-टू-फेस संचार किया जाए तो आसान होगा।
निष्कर्ष
नेटवर्क मार्केटिंग की संचार विधियों में विपणन क्रिया एवं उपभोक्ताओं के व्यवहार का अध्ययन करने के बाद पता चला कि अंतर्वैक्तिक संचार माध्यम से नेटवर्क मार्केटिंग और भी आसान हो रहा है। जबसे नेटवर्क मार्केटिंग कंपनियां संचार के लिए हिंदी या स्थानीय भारतीय भाषाओं का उपयोग कर रही हैं, तबसे भारत में MLM इंडस्ट्री बड़ी तेजी से बढ़ रही है।
कुछ नेटवर्क मार्केटिंग कंपनिया जैसे एमवे अपने उत्पादों को वापस लेने की गारंटी देती है, जिससे उपभोक्ताओं का विश्वास और बढ़ा है। ये कंपनिया खुद का 40 फीसदी लेने के बाद एक प्रोसेस के तहत 60 % अपने डिस्टीब्यूटर को देती हैं। करीब 80 फीसदी लोग ऐसे हैं जो करीबी या रिश्तेदारों के कहने पर इस व्यापार में आते हैं या फिर उपभोक्ता बनते हैं।
करीब 20 फीसदी उपभोक्ता ऐसे हैं, जो उत्पाद के गुणवत्ता से समझौता नहीं करते हैं। करीब 40 फीसदी उपभोक्ता ऐसे हैं जो या तो आसानी से उपलब्ध नहीं होने के कारण या फिर भाषा या किसी और कारण से समझ नहीं पाते और इस इंडस्ट्री से जुड़ नहीं पाते। नेटवर्क मार्केटिंग में जुड़ने के बाद असफल होने वालों में 70 फीसदी ऐसे हैं, जो भाषा के साथ और कई कारणों से समझ नहीं पाते और छोड़ देते हैं। 21वीं सदी नेटवर्क मार्केटिंग इंडस्ट्री की है।
नोट – रोहित सिंह चौहान, पेशे से लेखक एवं कवि हैं। वर्तमान में वे नेटवर्क मार्केटिंग में पी-एच.डी. शोधार्थी छात्र के रूप में अध्य्यनरत हैं।