Site icon Youth Ki Awaaz

मानवता सबसे बड़ा शौर्य है

मानवता सबसे बड़ा धर्म है

शौर्य क्या है? क्या शौर्य हरी वर्दी या खाकी वर्दी पर लटकते सितारों या तमगों की खनक है? क्या शौर्य सांप्रदायिक दंगों में अपनी कौम की रक्षा के नाम पर दूसरी कौम की मां, बहनों व बेटियों की इज्जत के साथ खेलना है ? उनके आशियाने को कुछ पलों में राख कर देना है? क्या शौर्य अपनी मूछों को ताव देते हुए उस गरीब निम्न जाति के आदमी की पगड़ी को लात मारना है? क्या शौर्य इस देश की आम जनता के पसीने की गाढ़ी कमाई से लूटकर भरी गई भ्रष्टाचार की तिजोरियों में जमा पैसे से खड़ी की गई शानो-शौकत है? क्या शौर्य उस निर्दोष पंछी या जानवर को अपनी गोली से मारकर उसकी फोटो अपने मेहमानखाने में टंगवाने में है? क्या शौर्य व्यास के पानी को रक्त के सुर्ख रंग में रंगने में है?

शौर्य है, बिना उन तमगों की हसरत पाले अपने देश की सरहद की रक्षा में लगे सिपाही द्वारा हंसते हंसते कैप्टन विक्रम बत्रा की तरह शहीद हो जाना, जो देश के लिए जान की परवाह किए बगैर कारगिल विजयी हुए। शौर्य है, दो कौम के बीच बढ़ती हुई खाई को पाटने में और मानवता की रक्षा करने में। शौर्य हिन्दुस्तान को सीरिया की तरह दोजख बनाने में नहीं है, बल्कि जैनुल आबेदीन के कश्मीर की तरह जन्नत बनाने में है। शौर्य उस गरीब निम्न जाति के आदमी को सम्मान से बिठाकर उसके सिर पर पगड़ी सजाने में है। शौर्य पिंजरे में बंद पंछी को खुले आसमान में आजाद करने में है। शौर्य एक दूसरे को खून में नहाने में नहीं, बल्कि एक दूसरे के साथ होली का गुलाल और ईद की सेवईंया बांटने में है।

भारत हो या विश्व, हर स्थान पर शौर्य, वीरता को समाज व व्यक्ति अपने अपने हित व स्वार्थों के अनुसार परिभाषित करता रहा है। इसको एक वाक्य में बांधना शायद संभव नहीं है, परंतु फिर भी अगर प्रयास किया जाए तो शायद संपूर्ण मानव समाज के हितों की रक्षा या मानवीय मूल्यों की रक्षा को ही शौर्य कहा जाएगा।

मानवता के बदलते परिप्रेक्ष्य में शौर्य की परिभाषा

विश्व में स्थान, समय, परिस्थिति व व्यक्ति विशेष के अनुसार वीरता का भावार्थ परिवर्तित हो जाता है। जब यूरोप में मार्टिन लूथर ने सदियों पुरानी कैथोलिक परम्परा के विरुद्ध प्रोटेस्टेंट आंदोलन को प्रारंभ किया, तो उन्हें ‘वीर’ कहा गया। फ्रांस में जब 18वीं सदी के अंत में नेपोलियन गणतंत्र को रौंदते हुए राष्ट्रवाद पर सवार होकर तानाशाह बना तो उसे ‘ वीर’ कहा गया। इटली में जब मुसोलिनी गणतंत्र के लिए जनांदोलन खड़ा कर रहा था तो उसे ‘ वीर’ कहा गया, वहीं इन यूरोपीय के विरुद्ध जब अमेरिका में वॉशिंगटन व उसके साथी संघर्ष कर रहे थे तो वे ‘ वीर’ की संज्ञा पा गए।

दक्षिण अमेरिका में जब विभिन्न कालखंड में साइमन बोलिवर यूरोपीय के विरुद्ध व ची ग्वेरा अमेरिकी पूंजीवाद के खिलाफ लड़ रहे थे तो वे ‘ वीर’ कहलाए गए। नेल्सन मंडेला जब जेल में बैठकर साम्राज्यवादी ब्रिटेन के खिलाफ शांति संघर्ष कर रहे थे तो वे भी ‘ वीर’ थे। वहीं आज मध्य एशिया में अमेरिकी पूंजीवाद के खिलाफ आपस में हो रहे खूनी खेल करने वाले भी ‘ जिहादी’ (धर्मरक्षक) संज्ञा पा रहे हैं, भले ही यह संज्ञा उनकी उन्हीं के धर्म से संबंधित अज्ञानता के कारण ही हो।

विविधता में एकता की परिभाषा

भारत में भी यही स्थिति देखी गई है, जो काल, स्थान, परिस्थिति व व्यक्ति सापेक्षता को दर्शाती है। भारत में प्रारम्भिक काल में आदिम जनजातियां जो यहां की स्थानीय थी, वे ‘ वीर’ रही होंगी। आर्यों के आगमन पर वे जनजातियां हाशिए में चली गई व ‘ वीर’ की संज्ञा बदल गई, कालांतर में ये संज्ञाएं बदलती रही हैं व इस महान भूमि पर अकबर भी महान बना और अशोक भी।

यहां दक्षिण में ‘ रावण’ महान है, तो उत्तर में ‘ राम’ महान है। यहां पर किसी जगह ‘ दुर्गा’ महान है, तो किसी जगह ‘ महिषासुर’ पूजनीय है। इसका अभिप्राय यह है कि किसी के लिए ‘ राम’ और ‘ दुर्गा’ वीर है, तो किसी के लिए ‘ रावण’ और ‘ महिषासुर’ वीर है।

जब भारत में अंग्रेजों का प्रवेश हुआ तो अंग्रेजों की सेवा करने में भी वीरता थी, परंतु जब 1857 का स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तो उन्हीं अंग्रेजों के सिर काटने में ‘वीरता’ थी। एक समय था, जब हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे में वीरता थी, वहीं भारत के बंटवारे के समय उन्होंने कुछ स्वार्थी तत्वों के बहकावे में आकर निर्दोषत: एक-दूसरे के सिर काटने में वीरता मान ली।

जिस देश में हमेशा किसी ना किसी कोने में आपसी संघर्ष में खून बहता रहा, उसी देश में एक लाठी से शांति व अहिंसा से एक आदमी ने स्वतंत्रता का महान संग्राम भी जीत लिया। जो वीर देशभक्त ‘ भगतसिंह’, ‘ आजाद’ अंग्रेजों के लिए आतंकवादी की संज्ञा प्राप्त थे, वे ही करोड़ों देशवासियों से ‘ वीर’ की संज्ञा पाते हैं।

21वी सदी में अर्थ बदलती मानवता की परिभाषा

आज जब देश व विश्व 21 वीं सदी के परिवर्तन के संक्रमण काल से गुजर रहा है, तो इतिहास और वर्तमान से सीख लेते हुए युवा शक्ति को ‘ वीरता’ व ‘ शौर्य’ की ‘आभासी छाया’ व ‘ वास्तविकता’ में अंतर जानना होगा, क्योंकि ‘ वीरता’ कश्मीर की आजादी के लिए खून बहा रहे कट्टरपंथियों में नहीं है। वीरता एक साधारण फिल्म या मनोरंजन के साधन को अपनी आन-बान शान का प्रतीक बताकर किसी को पीट देने व अपने द्वारा ही जौहर कर लेने में भी नहीं है।

‘ वीरता’ वर्दी की किसी निर्दोष को गोली मार देने या किसी अबला का बलात्कार करने में भी नहीं है। ‘ वीरता’ जोड़-तोड़, भ्रष्टाचार से सत्ता पर काबिज होने में भी नहीं है। ‘ वीरता’ अपने को उच्च जाति व दूसरे को निम्न जाति में बांधकर घसीटने में भी नहीं है।

‘ वीरता’ सड़क पर चलते समय कचरा उठाकर डस्टबिन में डालने में हो सकती है व ‘ वीरता’ ताउम्र ए पी जे अब्दुल कलाम की तरह देश की सेवा में भी हो सकती है। ‘ वीरता’ मुस्लिम दम्पति द्वारा अपने हिन्दू दोस्त के अनाथ बच्चों को गोद लेने में भी हो सकती है। ‘ वीरता’ देश की स्वास्थ्य रक्षा हेतु टीका बना रहे वैज्ञानिक बनने में भी हो सकती है व ‘वीरता’ देश की स्वच्छता में योगदान दे रहे सफाईकर्मी बनने में भी हो सकती है। ‘ वीरता’ सैन्य अधिकारी के घर पर घरेलू काम करने वाले सहायक बनने में भी हो सकती है , ‘वीरता’ अग्रिम मोर्चे पर देश की रक्षा के लिए लड़ रहे सैनिक बनने में भी हो सकती है।

अतः ‘ वीरता’ को जाति, धर्म, रंग, क्षेत्र, व्यवसाय, प्रस्थिति के आधार पर न देखा जाए, बल्कि आने वाली पीढ़ी को बताया जाए कि ‘ वीरता’ तो मानव मात्र की सेवा में है। ‘ वीरता’ तो प्रेम व सदभाव में है। ‘ वीरता’ तो दूसरों की नि:स्वार्थ सेवा में है। ‘ वीरता’ तो अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्योछावर करने में है।

 

 

Exit mobile version