हर एक आत्महत्या एक दुःखद त्रासदी है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रति 40 सेकंड में एक व्यक्ति विश्व भर में कहीं ना कहीं आत्महत्या कर रहा है। आत्महत्या शब्द सुनते ही हमारे आंखों के सामने एक अप्राकृतिक मृत्यु की तस्वीर उभर आती है। प्रत्येक आंकड़ों से उठती आवाजों के बीच हर व्यक्ति की अपनी एक कहानी है, मौत को गले लगाने के अनेक कारण हैं।
एक जीवन जो किसी माँ के गर्भ में 9 माह तक पलता-खिलता है और फिर संसार में अपनी सुगंध बिखेरता है उसे कैसे कोई निराशा के अंधकार में और एक अज्ञात जीवन के सुख की तलाश में समाप्त कर लेता है। प्रत्येक आत्महत्या हमारे मन मस्तिष्क में ऐसे ही कुछ अनसुलझे और अन्दर तक झकझोर देने वाले प्रश्नों के साथ छोड़ जाती है।
क्या कहता है विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं उसकी रिपोर्टें?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व भर में हर साल 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं, इनमें से 2 लाख आत्महत्याएं हमारे देश भारत में होती हैं जो कि एशियाई क्षेत्रों में सबसे अधिक हैं। आत्महत्या करने वाले चाहे किसान हों, विद्यार्थी हों, बुजर्ग हों या कोई गृहणी हो ऐसे कदम उठाने वाले अपने ही बीच के लोग होते हैं।
इन आंकड़ों से उठती चीखें पुकार-पुकार के कह रही हैं कि ‘आत्महत्या अब एक गंभीर जनस्वास्थ्य एवं सामाजिक समस्या बन चुकी है। आत्महत्या करने वाला प्रत्येक व्यक्ति हमारे समाज का एक अभिन्न हिस्सा होता है। वह व्यक्ति हम सभी से कहीं न कहीं एक परिवार, मित्र, साथी आदि के रूप में जुड़ा हुआ रहता है।’
इनमें से कुछ हमारे बहुत करीबी होते हैं और कुछ अपने आप में एवं सामाजिक स्तर पर बहुत अकेले होते हैं। इन आत्महत्याओं की बढ़ती जन स्वास्थ्य समस्या ने देश में यह हालात पैदा कर दिए हैं कि ‘भारत के 5 राज्य तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना अब ”सुसाईडल स्टेट” के नाम से पहचाने जाने लगे हैं।’
क्या हैं आत्महत्या करने के प्रमुख कारण?
आत्महत्या कभी भी हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं रही है। हमारा भारतीय मानस कभी भी इतना दुर्बल नहीं रहा है कि वह आत्महत्या जैसी बुराई को अपनी संस्कृति में अपनाए और उसे बढ़ावा दे परन्तु फिर आज क्यों भारत में सबसे अधिक आत्महत्याएं हो रही हैं?
हमारे द्वारा अगर गंभीरता एवं शांत चित्त से विचार किया जाए तो हम पाएंगे कि हमारी इंद्रियों का संचालन करने वाले पांच तत्व- ‘काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ की अधिकता हमारे मन में आत्महत्या के विचार को सक्रिय करने के प्रमुख कारण हैं जो हमारे भीतर ऐसे विकारों को उत्पन्न कर रहे हैं।
देश में होने वाली आत्महत्याओं के आंकड़े बताते हैं कि दहेज का लोभ, कामवासना के कारण महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाली बलात्कार की जघन्य घटनाएं, पुरूष सत्ता के आधिपत्य को स्थापित करने के अहंकार में महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा, शराब एवं अन्य मादक पदार्थों के मद में शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्तर पर महिलाओं और बच्चों एवं किशोर-किशोरियों को प्रताड़ित एवं शोषित करना, अपनी सामाजिक महत्वाकांक्षाओं के लिए बच्चों पर हर समय परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए माता-पिता एवं समाज द्वारा दबाव बनाना, युवाओं पर नौकरी में सफलता के लिये दबाव बनाना, महिलाओं पर विवाह के बाद बच्चे पैदा करने के लिये परिवार एवं समाज द्वारा दबाव डालना, सामाजिक स्तर पर सफलता को सिर्फ आर्थिक एवं भौतिकता के नजरिये से तौलना आदि नकारात्मक विचारों एवं विकारों को स्थापित करने के कारण ही आज समाज में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है ।
हमारे खोखले होते समाज के हर वर्ग के व्यक्ति को यह समझना होगा कि इन विकारों का त्याग करने से ही हमारे जीवन में शांति एवं सुख का आगमन होगा और आत्महत्या जैसी बुराई पर रोकथाम लगेगी ।
अहम सवाल क्या हैं आत्महत्या जैसी बुराई को जड़ से समाप्त करने के उपाय?
‘झांक रहे है इधर -उधर सब, अपने भीतर झांके कौन,
ढूंढ रहे है दुनिया में कमी सब, अपने मन में तांके कौन’
जब हम अपने आप को बिना समझे और जाने जीवन पथ पर आगे बढ़ते हैं और यथार्थ से परे, भौतिकतावाद, अति महत्वाकांक्षाओं पर आधारित अपने जीवन लक्ष्य का निर्माण करते हैं तो जीवन-पर्यन्त हमें भटकाव होता है। जब हम अपनी प्रतिभा और अच्छाईयों को बिना पहचाने अपने जीवन के कर्मपथ पर आगे बढ़ते हैं तो हमें सदैव निराशा व असफलता का हाथ लगाना स्वाभाविक है।
महात्मा बुद्ध का कथन है कि ‘व्यक्ति को कोई भी बात और विचार को पहले बुद्धि, तर्क, विवेक व चिंतन की कसौटी पर तोलना व कसना चाहिए और यदि वह बात और विचार स्वयं के लिये, समाज व सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के हित में लगे तो ही उसे मानो और अपनाओ।
”अप्प दीपो भव:” अर्थात अपने दीपक स्वयं बनों।
आज के आधुनिक युग में मनुष्य के पास जीवन जीने के लिये हर प्रकार की सुख-सुविधाएं एवं साधन उपलब्ध हैं परन्तु फिर भी मानव आर्थिक स्तर पर अधिक सम्पन्न बनने के चक्कर में इधर-उधर भटक रहा है। जीवन की इस भाग दौड़ में हमे चाहिए कि हम कुछ पल स्वयं के लिये निकालें फिर वह चाहे एक मिनट ही क्यों ना हो।
जीवन से दूर भागने के लिये हमें आत्महत्या की नहीं, बल्कि जीवन के उद्देश्य को समझने के लिये हमें आत्म अवलोकन एवं आत्मचिंतन की जरूरत है। यदि हम अपने जीवन के 60 सेकंड हर रोज आत्मचिंतन, सामाजिक जिम्मेदारी, भागेदारी एवं मानव कल्याण हेतु संकल्पित कर दें तभी जीवन में आनंद और उल्लास का आगमन होगा और निराशा और कुंठाओं का दौर समाप्त होगा।
अंत में अपनी बात हिन्दी के महान कवि श्री मैथिलिशरण गुप्त जी द्वारा रचित प्रेरणादायी पंक्तियों के साथ आप सभी को समर्पित करता हूं-
जब प्राप्त तुम्हे सब तत्व यहां
फिर जा सकता है वह सत्व कहां
तुम स्वत्व सुधा रसपान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो, न निराश करे मन को॥
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भूपेश दीक्षित आरोग्यसिद्धि फाउंडेशन( राजस्थान) के चेयरमैन हैं साथ ही पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट एंड मेन्टल हेल्थ एक्टिविस्ट भी हैं।