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महिला सशक्तिकरण की कहानी, एक महिला ट्रैफिककर्मी की जुबानी

महिलासशक्तिकरण की कहानी, एक महिला ट्रैफिककर्मी की जुबानी

आज सुबह मै कोर्ट जा रहा था। मेरा एक केस कोर्ट में सुबह ही लगा था, इसीलिए पहुंचने की जल्दी थी। जब हाईकोर्ट के पास पहुंचा तो देखा गोलचक्कर के पास बहुत भीड़ थी। एक ड्राइवर ने जल्दी के चक्कर में रेड लाइट ओवर टेक कर लिया था और उसकी चालान कटने वाली थी। इसी कारण वहां भीड़ लगी हुई थी। ड्राइवर बहुत विनती कर रहा था, फिर भी ट्रैफिक पुलिस मान नहीं रही थी। मैंने ध्यान देकर देखा तो पाया कि गोलचक्कर पर  केवल महिला पुलिस तैनात थी। इन महिलाओं के सामने ड्राइवर काफी विनती कर रहा था। खैर, मुझे तो कोर्ट जाने की जल्दी थी तो मैं कोर्ट चला गया।

कोर्ट जाने पर मुझे ज्ञात हुआ कि जज साहब छुट्टी पर हैं। इससे थोडा मन शांत हुआ। मैं कोर्ट मास्टर साहब से केस में तारीख लेकर चाय की चुस्की लेने चला गया। वहां पर मुझे मेरे एक अधिवक्ता मित्र भी मिले। उन्होंने मुझसे पूछा, आज तो 08.03.2021 है। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। आपने महिला सशक्तिकरण पर कुछ लिखा है क्या? मैं मुस्कुरा कर चाय की चुस्की लेने लगा। मेरे अधिवक्ता मित्र थोड़ी देर में वहां से उठकर चले गए ।

कैंटीन में उस ट्रैफिक महिलाकर्मी को देखकर सुबह का वाकया याद आया 

जब मैं कैंटीन में चाय पी रहा था तो कैंटीन में महिला ट्रैफिक पुलिस वाली औरतें भी दिखाई पड़ीं, जो चाय पी रही थीं। कौतुहलवश मैंने उनसे पूछा, आपने तो आज उस ड्राइवर को सीधा कर दिया होगा? वो ट्रैफिक पुलिस वाली महिला मुझे पहचान नहीं पाई। मैंने उस से सुबह के वाकया का जिक्र किया तो उसने मुझे नमस्कार किया और बताया, साहब मैं तो अपनी ड्यूटी निभा रही थी। यदि कोई ट्रैफिक के नियमों का पालन नहीं करता है तो चालान काटना ही पड़ता है। उसने कहा कि आज सुबह ही उसकी ड्यूटी खत्म हुई है, इसीलिए वो चाय पीकर घर चली जाएगी।

मेरा नाम ही मेरी पहचान है 

मैंने उससे पूछा, क्या आपको यह काम मुश्किल भरा नहीं लगता? रोड पर दिन भर खड़े होकर काम करना, धूप, गर्मी सहन करना और फिर घर की जिम्मेदारी भी संभालना। काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा ? अपने नाम के टैग को दिखाते हुए कहा, साहब इस कारण नहीं लगता । मुझे लोग मेरे नाम से जानते हैं । ये काफी है मेरे लिए।

महिला सशक्तिकरण की पहल

उसकी बात मैं समझा नहीं। उसने मुझे बताया कि उसकी सारी सहेलियों की शादी बचपन में ही हो गई थी। उसकी सहेलियों को किसी की पत्नी, किसी की माँ, किसी की बहू के रूप में जाना जाता है। किसी को भी उनके नाम से नहीं जाना जाता। कुछ सहेलियां पढने में काफी होशियार थीं, परन्तु शादी के बाद गुमनाम हो गईं। उसने कहा, मैंने बचपन में ही यह निश्चय कर लिया था, कि मैं अपने नाम से जानी जाउंगी। आज समाज में मुझे मेरे पति के नाम से नहीं, बल्कि मेरे नाम से जाना जाता है। यह काफी है मेरे लिए। फिर वो मुझे नमस्कार करके चली गई। मैं मन हीं मन महिला सशक्तिकरण की जीती जागती उदाहरण को देखकर आनंदित हो रहा था।
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