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जाति और धर्म में बंटा हुआ आम व्यक्ति और लोकतंत्र की मर्यादा

जाति और धर्म में बंटा हुआ आम व्यक्ति और लोकतंत्र की मर्यादा

आज की राजनीति का केवल अब एक यही उद्देश्य है कि जब तक सत्ता में रहेंगे और तुम पर राज करेंगे। इसमें भले भलाई जनता की हो या ना हो मलाई हम ही लेंगे। इसमें गलती भी राजनेताओं की नहीं है वरन जनता की है। जो किसी नायक या ईमानदार व्यक्ति को ना चुनकर किसी खलनायक को चुनती है, जब वह वोट देने जाती है तो जाति, धर्म में बंट जाती है। अब इन्हें कौन समझाए कि जितना तुम जाति, धर्म में बंटे रहोगे हमेशा उतना ही अकेले ही रहोगे।

जब हम किसी तथाकथित जाति और धर्म का नेता बनना छोड़ देंगे उस दिन हम लोकतंत्र के सिद्धांतों का निर्वहन एवं देश के एक ईमानदार और कर्तव्यपरायण नागरिक बन जाएंगे।

श्री कृष्ण ने गीता मे कहा है कि कलियुग में ऐसे लोगों का राज्य होगा, जो दोनों ओर से शोषण करेंगे। वे बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ। उनके मन में कुछ और कर्म में अन्य तरह के भाव होंगे। ऐसे ही लोगों का राज्य होगा।अन्न के भंडार होंगे लेकिन लोग भूख से मरेंगे। वे अपने महलों, बंगलों में एशोआराम कर रहे होंगे लेकिन पास की झोपड़ी में एक आदमी भूख से मर जाएगा। एक ही जगह पर असमानता अपने चरम पर होगी।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक हम जाति, धर्म और अपनो से भेदभाव करते रहेंगे और  स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने में लगे रहेंगे तब-तक दूसरे हमारा फायदा उठाकर हमारा शोषण करते रहेंगे। 

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