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जानिए जल संरक्षण की नई विधियों के प्रणेता पर्यावरणविद अनुपम मिश्र के बारे में

जानिए जल संरक्षण की नई विधियों के प्रणेता पर्यावरणविद अनुपम मिश्र के बारे में

जैव-विविधता को समझते वक्त हमने सुंदरलाल बहुगुणा को भी समझा, हरेला त्यौहार को समझते वक्त हमने बीज बचाओ आंदोलन को भी समझा और आज हम जब जल संसाधनों को समझ रहे हैं, तो हमें अनुपम मिश्र को भी समझना चाहिए।

जब हम चिपको आन्दोलन पर बातचीत कर रहे थे, तब हमने देखा कि लोगों को जागरूक करने में हमारे समाज और समुदाय की कितनी बड़ी भूमिका है। यह भूमिका सरकार के नियमों को भी पीछे छोड़ जाती है। अनुपम के कामों से भी यही बात झलकती है कि बिना ज़्यादा संसाधनों के इस्तेमाल से भी, समाज के दम पर हम हमारी समस्याओं के समाधान निकाल सकते हैं।

वैसे, घटना स्थलों पर रिपोर्टिंग तो सभी करते हैं लेकिन अनुपम ने उस स्थान पर जाकर वहीं रह कर, वहां के लोगों के संपर्क में रहकर, वर्तमान परिदृश्य को समझकर रिपोर्टिंग करना बेहतर समझा जिसके कारण उन्होंने पत्रकारिता के एक नए चेहरे को उभारा लेकिन आज हम इस चीज़ को पहचान नहीं पाते, क्योंकि आज की पत्रकारिता इतनी तेज़ी से चलती है कि उसमें गहराई और ठहराव कहीं छूट जाता है और यह एक प्रमुख कारण हो सकता है कि हम समाज को जल जैसी विकराल गंभीर समस्या पर सोचने का मौका नहीं दे पाते हैं।

इसी तरह अनुपम राजस्थान गए, जहां पानी का संकट हमेशा से ही ज़्यादा रहा है। वह उन समस्याओं को जानकारी के रूप में लेकर वापस नहीं आए। वह उन समस्याओं को वहीं रहकर जीने लगे। यही कारण था कि उन्होंने समझा अगर राजस्थान हज़ारों साल से पानी के संकट में है, तो यह हज़ारों साल से टिका कैसे है और ज़िंदा कैसे है? इसी सीख को उन्होंने देश के अलग-अलग मंचों में पेश किया और पानी को बचाने के अनेक तरीके जनता तक पहुंचाए।

अनुपम मध्य प्रदेश के एक बनवारी लाल शर्मा के पास भी पहुंचे, जो कि एक ग्रामीण क्षेत्र में काम कर रहे थे। उन्होंने अनुपम से कहा, “साधनों से विकास की गहराई नहीं नापी जाती और साधनों से विकास की सच्चाई भी नहीं नापी जा सकती। इन दोनों के अलावा कुछ और कर सकते हो, तो सोचकर देखो।” बनवारी लाल द्वारा यह पाठ अनुपम को पूरे जीवन भर याद रहा और यहीं से अनुपम जी की क्लास की शुरुआत हुई।

अनुपम उस समाज का हिस्सा थे, जो पानी को पहचानता था और उस समाज में इतनी शक्ति थी कि उस समाज ने लिखा, अपनी किताबें भी निकाली और हज़ारों लोगों को प्रेरित किया।

आइए सुनते हैं अनुपम द्वारा पानी की समस्या को लेकर कुछ लाइनें “कुछ बातें बार बार कहनी पड़ती हैं, उन बातों में से पानी एक है। अब हम पानी भी खरीदने लगे हैं और एक तरह से हम उपभोक्ता बन गए हैं। इसका यह मतलब है कि हम पानी पैदा नहीं करते पानी का संग्रह भी नहीं करते, नारे लगाते हैं। पानी खरीदते हैं लेकिन बहुत कम दाम पर, कुछ हमारे मन में शिकायत होती है कि पानी महंगा हो गया लेकिन पानी की जो कीमत है, वह हम नहीं चुका सकते।”

अनुपम की “आज भी खरे हैं तालाब” किताब की तरह मेरे गाँव में भी लगभग 6-7 तालाब हैं, उन तालाबों के कोई नाम तो नहीं लेकिन तालाब में रहने वालों के पचासों नाम है। उस तालाब का पानी हमारे कोई ज़्यादा प्रयोग में नहीं आता लेकिन मेरे घर वाले वहां की जैव-विविधता में घुसकर वहां से घास लाते हैं, गाँव की औरतें मिट्टी लाती हैं, लोग मछली पकड़ते हैं और मैंने भी ‘City Nature Challenge’ के कुछ Observation उन तालाब के वातावरण से लिए थे।

आज हम पानी तो पीते हैं लेकिन पानी के बारे में कम जानते हैं, हम पानी के इस्तेमाल से चलने वाली कंपनी के नाम ज़्यादा  जानते हैं और पानी के बारे में ज़्यादा भूलते जाते हैं। आज पचास मंजिल के ऊपर स्विमिंग पूल, तो है लेकिन नीचे पानी नहीं।

हमारा पानी के साथ रिश्ता पहले नदी, झीलों के माध्यम से था और आज नल, मोटरों के कारण है। अब तो इंडस्ट्री, बांध भी बहुत हैं और इतने रिश्ते बदलने के कारण इसका फल हमे प्रकृति देने लगी है।

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