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“भईया हम तो 200-300 रुपए ही कमाते है, फिर स्कूल कैसे जाएंगे?”

लगभग डेढ़ साल पहले मैं और मेरे दो साथी बिहार संग्रहालय घूमने निकले। वापस आते समय गेट पर एक 10 साल की छोटी सी बच्ची बड़े ही आशापूर्ण भाव से गुब्बारे लेने का आग्रह करने लगी, तो हमने एक गुब्बारा उससे खरीद लिया। उसके हाथ में रंग बिरंगे गुब्बारे ज़रूर थे पर उसका चेहरा बिल्कुल काला पड़ा हुआ था उसके भविष्य की तरह।

नंगे पैर इस गेट से अगली गेट तक दौड़कर अपने गुब्बारे बेचती लड़की को देखकर उससे बात करने का मन किया। उसकी इस मजबूरी का कारण जानना चाहा पर वह आगे बढ़ गई।

गुब्बारे बेचती बच्ची।

हम सब वहां से चल दिए। हम थोड़ी दूर आगे बढ़े तो हमने देखा कि एक बुज़ुर्ग दम्पती सड़क किनारे गुब्बारे फूला रहे थे और उसमें डंडी लगा रहे थे। हमें लगा कि ये शायद उस लड़की के माता-पिता हैं। जब हमने उनसे पूछा तो पता चला कि हमारा अंदाज़ा सही था।

पहले हमने अपना परिचय दिया, फिर हमने उनसे पूछा कि वे अपनी बिटियों को पढ़ने क्यों नहीं भेजते हैं। उनका मर्मस्पर्शी जवाब कुछ इस तरह था,

बेटा देखो हम लोग गरीब ज़रूर हैं पर हमारा भी सपना होता है कि अच्छा खाए, अच्छा कपड़ा पहने पर क्या करें, नसीब के मारे हैं। जहां तक बिटिया की पढ़ाई की बात है, तो उसका नाम पहली कक्षा में लिखवाए थे, किताब कॉपी भी लिए थे। वह पढ़ने भी जाती थी। फिर एक दिन साहब लोग का ऑर्डर आया कि यहां जगह खाली करो, अतिक्रमण वाले को हटाना है। घर द्वार तोड़कर भगा दिया हम लोग को।

उन्होंने आगे बताते हुए कहा,

अब हम खुसरूपुर में रहते हैं। वहीं से सवेरे मोकामा होते हुए 7 बजे आते हैं और 8 बजे वापस जाते हैं। अब तुम ही लोग बताओ कि एक जगह रहे तब ना बिटिया को पढ़ाए।

फिर हमने पूछा कि तब वहीं क्यों नहीं लिखवा देते उसका नाम। उन्होंने जवाब दिया,

अरे बेटा हमारी ज़िंदगी इतनी आसान नहीं होती। वहां नाम लिखवा दिए तो हो सकता है कल वहां से भी भगा दे।

हम सब उनकी बातों को सुनकर स्तब्ध थे।

बूढ़े दंपत्ति

हमने कहा कि हम सब पढाएंगे बच्ची को। उन्होंने जवाब दिया कि दो साल बाद वे बच्ची की शादी कर देंगे। तभी मैंने उन्हें बीच में रोककर कहा कि देखिए इसकी शादी 18 साल से पहले मत कीजिए। फिर हमने उन्हें बहुत समझाया। उन्होंने कहा कि वे एक बार और इसका नाम लिखवा देंगे।

इतने में वह बच्ची भी गुब्बारे बेचकर आ गई। हमने उससे भी बात की। हम उससे कुछ भी पूछते थे तो वह हंसकर जवाब देती थी। हमें आश्चर्य इस बात पर हुआ कि उसे बस पैसे की पहचान आती थी और कुछ नहीं।

हमने उससे पूछा कि क्या उसका मन स्कूल जाने को नहीं करता। उसने हंसते हुए हां में जवाब दिया। उसने आगे अपनी परेशानी व्यक्त करते हुए कहा,

हम दिनभर में 200-300 रुपए ही कमाते है, फिर स्कूल कैसे जाएगे।

हमारे और भी सवाल थे पर वह ज़्यादा देर तक रुकी नहीं। गुब्बारे लेकर फिर चली गई।

हमने इस पूरी बातचीत की एक वीडियो बनाई थी पर गाड़ियों के आवाज़ के कारण हमारी आवाज़ सही नहीं आ पाई, इसलिए कुछ तस्वीरें आप लोगों के साथ साझा करता हूं। 

मेरा सवाल यह है कि सरकारें रोज़ गरीबों के उत्थान की बात करती हैं। सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात करती है, तो क्यों किसी बेटी को पढ़ाई छोड़नी पड़ती है? ज़रूरतमंद लोगों तक ये सुविधाएं क्यों नहीं पहुंच पाती हैं? ये सारी योजनाएं सिर्फ कागज़ों तक सिमटकर क्यों रह जाती हैं?

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