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अबॉर्शन से जुड़ी वे जानकारियां जो हर महिला को जाननी चाहिए

Legal Rights for Abortion in india

पिछले कुछ समय से #MyBodyMyChoice अर्थात मेरा शरीर और मेरी पसंद कैंपेन के तहत कुछ संगठनों द्वारा यह मांग की जा रही है कि एक महिला को उसके शरीर पर पूरा अधिकार है इसलिए उसे अपने गर्भ निर्धारण और गर्भपात दोनों का अधिकार मिलना चाहिए।

मैं इस मांग और इस अवधारणा से सहमत हूं लेकिन ‘पसंद’ या ‘अधिकार’ की बात तो तब हो ना, जब सभी महिलाओं को इसके बारे में जानकारी हो या फिर उन्हें इस बारे में अपनी राय रखने की पूरी छूट दी जाये या फिर कभी उनसे इस बारे में राय लेने के बारे में सोचा जाये।

हालात तो यह है कि आज भी भारत के कई घरों में महिलाओं को अपनी बेहद निजी ज़रूरतों से संबंधित चीज़ों को खुद से खरीदने तक का अधिकार नहीं है, तो गर्भपात का अधिकार तो बहुत दूर की बात है।

मेरे ऑफिस की एक सहयोगी से पता चला कि उनके पड़ोस में रहनेवाली एक लड़की को अपनी मर्ज़ी से अपने अंत:वस्त्र खरीदने की भी इजाज़त नहीं है। उसका पति उसे सभी चीज़ें लाकर देता है, फिर चाहे उसे वो पसंद आए या ना आए, उसे वही पहनना होता है।

यह सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और अटपटा भी लगा क्योंकि यह मेरी कल्पना से परे था लेकिन यह हकीकत है। अब ऐसी स्थिति में आप ही सोचिए कि जिस समाज में महिलाओं को अपनी पसंद से कपड़े खरीदने का भी हक नहीं हो, वहां गर्भपात कराने का अधिकार क्या खाक मिलेगा।

गर्भपात का अर्थ है, भ्रूण को पूर्ण विकसित होने से पूर्व ही उसे गर्भाशय से निकालकर बाहर करना। ऐसा करने से गर्भावस्था की समाप्ति हो जाती है। गर्भपात को अंग्रेजी में Abortion कहा जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी रिपोर्ट में दुनियाभर में कराये जा रहे गर्भपात को तीन श्रेणियों में बांटा है। सुरक्षित गर्भपात, कम सुरक्षित गर्भपात और बहुत कम सुरक्षित गर्भपात।

आंकड़ों के मुताबिक-

1. पूरी दुनिया में 2010 से 2014 के बीच 55% सुरक्षित गर्भपात हुए थे।

2. लगभग 31% गर्भपात ऐसे होते हैं जो कम सुरक्षित गर्भपात की श्रेणी में आते हैं।

3. 2010 से 2014 के बीच प्रत्येक वर्ष दुनियाभर में 45% असुरक्षित गर्भपात हुए।

4. 97% असुरक्षित गर्भपात एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरीकी देशों में होते हैं।

5. भारत जैसे विकासशील देशों में 50% तक असुरक्षित गर्भपात होते हैं।

6. भारत में असुरक्षित गर्भपात के कारण हर दिन लगभग 13 महिलाओं की मृत्यु होती है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाईजेशन के अनुसार भारत में होने वाले दो तिहाई गर्भपात अवैध और असुरक्षित तरीकों से या तो घर में किये जाते हैं या फिर गैर-कानूनी रूप से चल रहे दवाखानों में गैर-पेशेवर लोगों द्वारा इसे अंजाम दिया जाता है। ये हालात उस देश में हैं जहां गर्भपात ना सिर्फ वैध है बल्कि आसानी से मुहैया भी करवाया जा सकता है।

संवैधानिक दृष्टि से वर्ष 1971 में पारित मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (Medical Termination of Pregnancy Act-‘MTP act’) के अनुसार निम्न परिस्थतियों में एक महिला को अपनी मर्ज़ी से गर्भपात कराने का अधिकार दिया गया है-

1. अगर गर्भ के कारण महिला की जान खतरे में हो।

2. यदि गर्भ की वजह से महिला को गंभीर मानसिक और शारीरिक परेशानी होने की संभावना हो।

3. यदि गर्भ में पल रहे बच्चे के किसी अंग के डैमेज होने का शक हो।

4. अगर महिला मानसिक या शारीरिक तौर पर गर्भधारण के लिए सक्षम ना हो।

5. अगर किसी महिला के साथ हुए बलात्कार की वजह से वह गर्भवती हुई हो।

6. अगर किसी महिला की मर्ज़ी के खिलाफ उसका अबॉर्शन कराया जाता है, तो ऐसे में दोषी व्यक्तियों को सज़ा का प्रावधान है।

इसके अलावा, गर्भपात जहां पर किया जा रहा है, उस संस्थान का एमटीपी एक्ट के तहत सीएमओ ऑफिस में रजिस्टर्ड होना ज़रूरी है। जो डॉक्टर अबॉर्शन कर रहे हों, उनके पास एमबीबीएस डिग्री के अलावा डीओजी या एमडी डिग्री भी होनी चाहिए। गर्भपात कराने वाली लड़की के नाबालिग होने की स्थिति में उसके माता-पिता से कानूनी सलाह-मशविरा किया जाना अनिवार्य है।

अविवाहित महिलाओं को भी गर्भपात का कानूनी अधिकार-

अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का कानूनी अधिकार मिलने के बाद भी उन्हें समाज में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वर्तमान समाज में लिव-इन रिलेशनशिप आम होता जा रहा है, ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि कानूनी मान्याताओं के साथ ही सामाजिक रूप में भी इसे अपनाया जाए।

वर्तमान में इस वजह से अक्सर अविवाहित महिलाएं डॉक्टर के पास जाकर गर्भपात कराने से बचती हैं और इधर-उधर से पूछताछ करके या इंटरनेट से अधकचरी जानकारी लेकर खुद अपने हाथों अपना गर्भपात करने का रिस्क उठाती हैं। परिणाम, उनको कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां उठानी पड़ती हैं। यहां तक कि कई बार तो उनकी जान पर बन आती है।

वर्ष 2014 में इस उद्देश्य से प्रस्तावित कानून के मुताबिक सभी महिलाओं को अपनी मर्ज़ी से गर्भपात की इजाज़त दी गयी है। साथ ही, इसमें यह प्रस्ताव भी रखा गया है कि गर्भपात कराते समय उस लड़की अथवा महिला की निजता का ख्याल रखा जाये।

नये नियमों के मुताबिक गर्भपात के लिए प्रशिक्षित डॉक्टरों की संख्या कम ना पड़े इसलिए आयुष के अंदर आने वाले डॉक्टरों को भी गर्भपात कराने की इजाज़त दी जा रही है। इसके अलावा, पूर्व कानून के अनुसार गर्भ के 20 हफ्तों तक गर्भपात कराना भारत में कानूनी तौर पर मान्य है, इस सीमा को 24 हफ्तों तक बढ़ाने की सिफारिश भी की गयी है।

मेरी राय में गर्भपात के संदर्भ में निम्नलिखित मुद्दों को ध्यान में रखा जाना बेहद ज़रूरी है-

हमारे देश में आज भी सबसे ज़्यादा गर्भपात परिवार के भीतर रहने वाली महिलाओं द्वारा करवाया जाता है, कभी पति या परिवार के दबाव में तो कभी जानकारी के अभाव में (अनचाहे गर्भ की स्थिति में) लेकिन अफसोस कि उनके बारे में कभी कहीं कोई चर्चा होती ही नहीं है। इन मामलों में ही कई तरह की स्थितियां बनती हैं।

पहला, मेडिकल साइंस के अनुसार, एक बच्चे के जन्म में बाद किसी महिला का शरीर अगले तीन सालों तक दोबारा से कंसीव करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होता है। ऐसे में अगर किसी वजह से उसका गर्भ ठहर जाता है, तो उसे गर्भपात कराने का अधिकार मिलना ही चाहिए।

दूसरा, अगर कोई विवाहित या अविवाहित महिला गभर्वती हो और शारीरिक, आर्थिक रूप से समर्थ होने के बावजूद बच्चा नहीं चाहती हो, तो उसे गर्भपात का अधिकार मिलना चाहिए। यहां भी कारण बताने की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए।

तीसरा, अगर जानकारी या सुरक्षा उपायों के अभाव में कोई महिला (विवाहित/अविवाहित) प्रेग्नेंट होती है और पूरी तरह से सक्षम होने के बावजूद वह उस बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती लेकिन पति/पार्टनर बच्चा चाहता हो, तो उसके गर्भपात अधिकार में पति की सहमति का भी ख्याल रखा जाना चाहिए क्योंकि बच्चे पर पिता का भी हक होता है।

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