Site icon Youth Ki Awaaz

95% जनजातीय आबादी के बावजूद लद्दाख को जनजातीय अधिकार क्यों नहीं दिए जा रहे हैं?

केंद्र सरकार ने जब लद्दाख को एक केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया तो वहां की जनता को बहुत खुशी हुई थी। किस्मत की बात यह थी कि मैं भी 5 अगस्त को लेह में ही था और लोग वहां कह रहे थे कि उनकी 70 साल पुरानी मांग पूरी हो गई।

मैंने जब कुछ और लोगों से पूछा, “आप इस फैसले से पूरी तरह खुश हैं या नहीं?” इस प्रश्न पर उसी समय मुझे कुछ लोगों ने कहा,

6वीं अनुसूची में डाले बिना हमें केंद्र शासित प्रदेश बनाने का कोई फायदा नहीं है।

नागरिकता संशोधन विधेयक में भी सरकार असम की चिंताओं को दूर करने के लिए बार-बार संविधान की 6वीं अनुसूची का उल्लेख कर रही है।

कल (गुरुवार) लेह के मुख्य बाज़ार क्षेत्र में लद्दाखी स्टूडेंट्स यूनियन ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर लद्दाख को 6वीं अनुसूची में डालने और जॉब रिज़र्वेशन की मांग को लेकर प्रदर्शन किया और कई स्टूडेंट्स यूनियन अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठ गए हैं।

ये सभी स्टूडेंट्स, स्टूडेंट्स ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ यूनिफाइड लद्दाख (एसओयूएल) के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे हैं। एसओयूएल के अध्यक्ष रिगज़िन दोरजे ने कहा कि अगर मांगों को नहीं माना गया तो वे कम्प्लीट शटडाउन और चक्का जाम करेंगे। उन्होंने कुछ अधिकारियों पर प्रदर्शन को बंद कराने का आरोप लगाते हुए कहा,

हम पीछे नहीं हटेंगे और जब तक हमारी मांगें नहीं मान ली जाती, हम भूख हड़ताल पर बैठे रहेंगे।

गौर करने वाली बात यह है कि इसी जगह अगस्त में केंद्र सरकार के समर्थन में नारे लगे थे और प्रधानमंत्री को धन्यवाद देने वाले पोस्टर भी लगे थे।

विख्यात पर्यावरणविद और इनोवेटर सोनम वांगचुक ने प्रोटेस्ट के एक वीडियो को शेयर करते हुए लिखा,

लद्दाख को बचाओ और पर्यावरण को बचाओ। स्टूडेंट्स कड़ाके की ठंड में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि प्रशासन प्रदर्शनकारियों की आवाज़ दबाने की कोशिश कर रहा है। कृपया इस मैसेज को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तक पहुंचाएं। यह मैसेज समय से पहुंच जाए और कहीं ऐसा ना हो कि बहुत देर हो जाए। जय हिंद।

सोनम वांगचुक ने मन की बात फ्रॉम रिमोट लद्दाख नाम से एक वीडियो शेयर किया था, जिसमें उन्होंने स्थानीय लोगों की काफी शंकाएं व्यक्त की थीं।

वीडियो में उन्हें यह कहते हुए सुना जा सकता है,

लोगों को लद्दाख यूटी के तौर पर मिल गया, इससे तो वे बहुत खुश हैं लेकिन यूटी बनने के साथ जनजातीय लोगों को जो संरक्षण मिलते हैं वह घोषित नहीं हुए। लद्दाख में 95% से अधिक जनजातीय लोग हैं। हम मानकर चल रहे थे कि संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची के तहत जनजातीय लोगों को संरक्षण मिलेगा लेकिन इतने महीने बाद भी इसकी घोषणा नहीं हुई।

वह आगे कहते हैं,

लोग इस बात से बहुत घबराएं हुए हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? लोग अब यह कहने लगे हैं कि क्या ये यूटी हमारे लिए (लद्दाखवासियों) दिया भी गया था या फिर यहां के स्रोत खनिज संसाधनों के शोषण के लिए दिया गया है। कुछ तो यह भी कहने लगे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा जैसा तिब्बत में चीन ने किया था।

आखिरकार संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची है क्या और इससे किस तरह के अधिकार मिलते हैं?

भारत में अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों की सुरक्षा और उनके अधिकारों के लिए संविधान में 5वीं और 6वीं अनुसूची के तहत प्रावधान किए गए हैं जो इस प्रकार हैं,

1. संविधान की पांचवी अनुसूची में राज्यों के अनुसूचित क्षेत्र व अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन व नियंत्रण के बारे में चर्चा की गई है। इनमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम को शामिल नहीं किया गया है।

वर्तमान में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना आदि राज्यों के कुछ क्षेत्र संविधान की 5वीं सूची के अंतर्गत हैं। इस अनूसूची के तहत राष्ट्रपति के पास यह ताकत होती है कि वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित जनजातीय क्षेत्र या जनजातीय क्षेत्र घोषित कर सकते हैं। कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों की महासभा ने बस्तर में संविधान की 5वीं अनुसूची को असफल बताते हुए 6वीं अनुसूची को लागू करने की मांग की थी।

2. संविधान की 6वीं अनुसूची जनजातीय क्षेत्र को काफी हद तक स्वायत्ता प्रदान करती है, जिसके तहत असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिज़ोरम स्वायत्त क्षेत्र हैं। इस अनुसूची के तहत डिस्ट्रिक्ट कॉउंसिल और रीज़नल कॉउंसिल को कानून बनाने और कई विधायी कार्यों के क्रियान्वन की शक्ति मिलती है।

इस क्षेत्रों में कॉउंसिल अपने कस्टमरी लॉज़ (स्थनीय कानून) बना सकते हैं और ये भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) से अलग भी हो सकते हैं। इन सभी कॉउंसिल की न्याय देने की प्रक्रिया भी हमसे अलग होती है और इनके ग्रामीण स्तर पर कोर्ट होते हैं। इनके पास सज़ा देने की भी पूरी ताकत होती है।

आम भाषा में समझें तो जैसी न्यायिक व्यवस्था दिल्ली, यूपी या उत्तरखंड में काम करती है वैसी यहां नहीं है। अनुसूची के तहत, कॉउंसिल के पास यह भी अधिकार होते हैं कि वे भारत सरकार के संचित निधि (कोष) से मिली आर्थिक सहायता को खुद से स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सड़क या अन्य कार्यों में लगा सकते हैं। हालांकि, 6वीं अनुसूची के अपने नुकसान भी हैं, यहां कानून व्यवस्था के बिगड़ने की संभावना रहती है और चुनाव प्रक्रिया भी कमज़ोर होती है।

लद्दाख क्यों कर रहा है संविधान की 6वीं अनुसूची को लागू करने की मांग?

लद्दाख के लोगों को सबसे बड़ा डर इस बात का है कि यूटी बनने के साथ वहां के जनजातीय लोगों को जो संरक्षण मिलने थे, वे अब तक घोषित नहीं हुए हैं। आर्टिकल 370 या यूटी बनने से पहले लद्दाख के पास ये अधिकार थे कि वहां कोई बाहरी व्यक्ति ज़मीन नहीं खरीद सकता है और वहां बड़े पैमाने पर खनन उद्योग भी नहीं हो सकते हैं। हालांकि, यूटी बनने के बाद लद्दाख के पास ये सभी अधिकार नहीं रह गए हैं।

लोगों का कहना है कि क्या ये यूटी उनके लिए (लद्दाखवासियों) बनाया गया है या फिर यहां के स्रोत खनिज संसाधनों के शोषण के लिए बनाया गया है। आम भाषा में समझें तो लद्दाख के लोग 6वीं अनुसूची के तहत अपने लिए संरक्षण की मांग कर रहे हैं। अगर यहां 6वीं अनुसूची या संरक्षण के कोई और तरीके लागू नहीं किए जाते हैं तो लद्दाख के शोषण बढ़ सकता है।

Exit mobile version