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पेट की भूख, कर्ज़ और भेदभाव के बीच पिस रही हैं अजमेर की सेक्स वर्कर्स

कोविड-19 के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। हम 15 लाख के आंकड़े को तो पार ही कर चुके हैं। इस महामारी का स्वास्थ्य से भी कहीं ज़्यादा प्रभाव लोगों की मानसिक और आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है और इन परिस्थितियों के नतीजे के रूप में ही पनपता है भेदभाव!

हर तबका परेशान है। जो आर्थिक रूप से मज़बूत हैं, वे मानसिक तनाव झेल रहे हैं और जो मानसिक रूप से मज़बूत हैं, वे आर्थिक तंगी! ऐसा ही एक समूह है, जो हमेशा से समाज में रहकर भी उपेक्षित है और सुविधाओं से वंचित भी!

जी हां, मैं बात कर रही हूं सेक्स वर्कर्स कम्युनिटी की। जिनका काम-धंधा पूरी तरह से महामारी की चपेट में आ चुका है।अजमेर की रहने वाली सलमा (बदला हुआ नाम), जो कि एक सेक्स वर्कर हैं वो बताती हैं,

“पिछले चार महीनों में सरकार और नगर निगम की तरफ से उन्हें कोई भी सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गई हैं। शुरुआती लॉकडाउन में बस तीन दिन ही नगर निगम ने खाना बांटा। उसके बाद यह कहकर आने से मना कर दिया कि यहां भीड़-भाड़ ज़्यादा है, कोरोना का खतरा हो सकता है।

सलमा आगे कहती हैं, “तो क्या हम इंसान नहीं हैं? क्या हमारी ज़रूरतें नहीं हैं? हमारे साथ ऐसा भेदभाव क्यों?  हम इतने परेशान हैं कि लोगों से मांग-मांगकर अपना काम चलाने को मजबूर हैं।”

जब सलमा से सरकार द्वारा मुफ्त में राशन बांटने की योजना पर जानकारी ली गई तो वो कहती हैं, “राशन लेने के लिए आईडी प्रूफ लगते हैं। जो अपनी पहचान छुपाने को मजबूर हैं, वे कहां से ये सब दे सकती हैं? कोई बिहार से है तो कोई मुम्बई और पंजाब से! सबके पास कागज़ पत्री तो नहीं हैं।”

वो आगे कहती हैं, “तो क्या सरकार को हमारी सुध लेने की पड़ी ही नहीं है? कुछ एनजीओ और संस्थाएं हमारी मदद के लिए आगे तो आई हैं लेकिन समस्या यह है कि लगभग 300 सेक्स वर्कर्स के लिए ज़रूरत की चीज़ों की पूर्ति भला कुछ संस्थाएं कैसे कर सकती हैं?

अजमेर में कोरोना के कारण एक सेक्स वर्कर की मौत हो गई

प्रतीकात्कम तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

सलमा से बात करने के दौरान यह बात साफ हुई कि उन्हें हर तरफ भेदभाव झेलना पड़ रहा है और भेदभाव की जो सबसे आश्चर्यजनक तस्वीर सामने आई, वो यह कि महामारी की इस मार में उनकी कम्युनिटी की ही एक सेक्स वर्कर की मौत हो गई।

सलमा बताती हैं, “हमारी एक सेक्स वर्कर की मौत कोविड-19 की वजह से हो गई, जो कि हमारे ही मुहल्ले में रहती थीं जिसे हमारी ही कम्युनिटी की एक वर्कर अस्पताल ले गई थी। जब हमें पता चला कि उनकी मौत कोरोना से हुई है, तो हम सब भी घबराकर स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे और डॉक्टर्स से विनती की कि हमारे भी टेस्ट किए जाएं। इस पर अस्पताल प्रशासन ने जो कहा वो बेहद शर्मनाक है।”

सलमा के मुताबिक अस्पताल प्रशासन ने कहा, “जाओ यहां से। क्यों सरकार के पैसे बर्बाद कर रही हो? जब उसके घर में कोई पॉज़िटिव नहीं निकला तो तुम सबको कैसे निकल सकता है?”

सलमा कहती हैं, “इस सबके बावजूद भी हमने हंगामा किया तो हमारे नमूने लिए गए लेकिन रिपोटर्स देने से इंकार करते हुए कह दिया गया कि सब नेगेटिव हैं इसलिए रिपोर्ट्स नहीं भेजी जाएंगी। बहुत वाजिब सा सवाल है कि क्या और लोगों के साथ भी ऐसा ही किया जा रहा है? और यह भेदभाव सड़क से घर तक हर तरफ हमारे लिए ही क्यों है?”

बेघर हो गई हैं कई सेक्स वर्कर्स

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

सलमा बताती हैं कि उनकी कम्युनिटी की एक साथी सेक्स वर्कर बेघर हो गई हैं। मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया है। सलमा खुद भी किराये के घर में रहती हैं जिनसे किरायेदार पहले कई महीनों तक किराया नहीं मांगते थे, अब वो किराये के लिए दबाव बना रहे हैं और नहीं मिलने पर घर खाली करने की धमकी दे रहे हैं। काम-धंधा सब बंद है. बचत के नाम पर जो कुछ भी था खत्म हो चुका है। अब किराया किस तरह जुटाया जाए?

उनके साथ भेदभाव यही खत्म नहीं होता, सलमा बताती हैं, “सभी जानते हैं कि हमारे काम बंद हो चुके हैं। हमें अब परचून की दुकानों ने उधार सामान देना बंद कर दिया है। सामान मांगने पर वे बहाना बनाते हुए कहते हैं कि दीदी सामान खत्म हो चुका है। होता तो ज़रूर दे देते। जबकि हम जानते हैं उनके पास सामान होता है।”

सलमा आगे बताती हैं, “जब आर्थिक तंगी के चलते कुछ सेक्स वर्कर्स ने पैसे उधार लेकर सब्ज़ी-भाजी के ठेले लगाए तो पुलिस ने उन्हें लॉकडाउन का हवाला देते हुए ठेले लगाने से मना नहीं किया, बल्कि सब्ज़ी के ठेले के पलटा दिए। साथ ही उनके साथ मारपीट भी की।”

कड़ी धूप में ग्राहकों की तलाश करती हैं सेक्स वर्कर्स

सलमा आगे कहती हैं, “हम अपनी समस्या लेकर कहां जाएं? कुछ संस्थाएं मदद कर रही हैं लेकिन उतना काफी नहीं है। बहुत सारी सेक्स वर्कर्स ऐसी हैं, जिनके घर वालों को असल में पता ही नहीं है कि वे क्या काम करती हैं। उनके घरों से दबाव डाला जा रहा है कि जिसके लिए काम करती हो, उनसे कहो कि हमें पैसे दें हमारा खर्च उठाएं।

“पुलिस के पास गुहार लगाने जाओ तो वह दुर्व्यवहार करती है। हमें कहा जाता है कि किसी से उधार लेने या किसी का घर किराये पर लेने क्या हमसे पूछकर गए थे? स्थितियां बहुत खराब हैं।” इतना कहते ही सलमा का गला भर आया।

वो आगे कहती हैं, “मैं कोरोना से नहीं डरती लेकिन इन परिस्थितियों और लोगों के व्यवहार से डर लगने लगा है।” जब उनसे पूछा गया कि किस बात से वो डर गई हैं क्या? तो सलमा बताती हैं कि पिछले हफ्ते ही उनकी कुछ साथी सेक्स वर्कर कड़ी धूप में बैठी मिली, जब उनसे पूछा वो यहां क्या कर रही हैं? तो पता चला कि वे क्लाइंट तलाश रही हैं।

सलमा कहती हैं, “जब मैंने उनसे पूछा कि कहीं कोई कोरोना पॉज़िटिव हुआ तो क्या होगा?” तो उन वर्कर्स का कहना था कि अभी तो हमारे छोटे बच्चे भूख से मर रहे हैं। हम कोरोना से जब मरेंगे तो देखा जाएगा।

सेक्स वर्कर्स की संख्या में भारी बढ़ोतरी का अंदेशा

जब सलमा से पूछा गया कि क्या स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर उनकी सुध ली जा रही है? तो सलमा कहती हैं, “हम तक कोई स्वास्थ्य विभागीय टीम नहीं पहुंची है। हमें, हमारे घरों को सैनिटाइज़ करने या कोरोना से बचाव के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।”

वो आगे कहती हैं, “हमें सीधे तौर पर नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। जैसे किसानों और बाकी वर्गों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है, उस तरह हमें क्यों नहीं? सरकार के पास हमारी पूरी जानकारी है और यदि नहीं है, तो एचआईवी टेस्ट किसके और किसलिए करवाते हैं? कंडोम्स क्यों बांटी जाती हैं? विडीआरएल की क्यों ज़रूरत है?”

सलमा का कहना है कि उनके साथ जानते-बूझते भेदभाव किया जा रहा है। यदि उन्हें वक्त रहते मदद नहीं दी गई तो हालात बहुत बिगड़ जाएंगे। बातचीत के अंतिम पड़ाव में सलमा बुझे मन से कहती हैं,

महामारी से ज़िन्दगी बत्तर हो गई है। हम इतने परेशान हैं कि वापस काम पर लौटना चाहते हैं। कोरोना से जब मरेंगे तो मरेंगे, ये भेदभाव और परेशानियां हमें पहले ही मार डालेंगी लेकिन हम मज़बूर हैं ढाबे, होटल, बाग-बगीचे, ऑटो रिक्शे सब बंद है। हम काम पर नहीं लौट सकते।

माना कोविड-19 ने हर तबके को ही प्रभावित किया है लेकिन क्या कभी आपने खुद से प्रश्न किया है कि इस महामारी के बाद क्या बदल जाएगा? बेशक हम में से बहुत से लोग घर, शहर, नौकरी और आओ हवा बदलने की बात करते हैं लेकिन सलमा ने कहा कि यदि ये सब नहीं थमा तो सेक्स वर्कर्स की संख्या और भी ज़्यादा हो जाएगी जो किसी भी महामारी से ज़्यादा बुरा होगा।

मंदिर मस्जिद की राजनीति में सेक्स वर्कर्स की सुध लेने वाला कोई नहीं!

क्या हम, हमारा समाज, हमारी संस्कृत्ति और हमारी सरकारें इतनी विचाराधीन हैं या कहिए विचार विहीन है, जो एक तबके को यूं आधारहीन बना रही है। सेक्स वर्कर्स समाज का अंग हैं और यह हम सब जानते हैं। बस इस अंग को हम महसूस नहीं करते या करना नहीं चाहते है।

भेदभाव किसी के भी साथ हुआ हो गलत ही कहा जाएगा लेकिन सरकारों के साथ-साथ धनाढ्य कहे जाने वाले संस्थानों ने भी इस वर्ग को हेय मान लिया है और कितने ही तबके इस समय अस्तित्वविहीन हो गए हैं। यह किसी एक सलमा की कहानी नहीं, बल्कि वैसी हजारों-लाखों सलमा का दर्द है।

मेरा यह कहना दुस्साहस हो सकता है लेकिन क्या हमें वाकई ऐसी सरकारों की जरूरत है? जहां कोई इतने कठिन दौर में भी अपने बच्चो की खातिर खुद को बैचने सड़क पर उतर आया हो। क्या वहां मंदिर-मस्जिदों को बनाए जाने की दरकार होनी चाहिए?

हमें मंदिर, मस्जिद और चुनावी रैलियों वाली सरकारों की जरूरत नहीं है। हमें ज़रूरत है उन मुट्ठी भर लोगों की जो सबके पेट भरे देखना चाहते हों। उम्मीद है कि यह भेदभाव का दौर सिमट जाए। भेदभाव की जड़ें वरगद से भी ज़्यादा फ़ैल सकती हैं, वो आपका परिचय मांगकर दरियादिली नहीं दिखाती है।

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